कलम तराश कर रखना हिसाब मांगेंगे
सफों में कैद पड़े ख़त जवाब मांगेंगे ।
तड़पती चाह पर इतनी निगाह तो रखना
सफ़र में प्यासे हमेशा ही आब मांगेंगे ।
अगर सवाल हुआ तीश्नगी के बारे में
जवाब इसका यही है शराब मांगेंगे ।
लहूलुहान हुए है यकीन में आकर
दुआ कबूल न होंगी रकाब मांगेंगे ।
हवा में दर्द का देखो न शोर बढ़ जाये
हिना से हाथ रंगे इन्किलाब मांगेंगे ।
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रचनाकार ------अनिरुद्ध सिन्हा
21 टिप्पणियां:
कलम तराश कर रखना हिसाब मांगेंगे
सफों में कैद पड़े ख़त जवाब मांगेंगे ।
लहूलुहान हुए है यकीन में आकर
दुआ कबूल न होंगी रकाब मांगेंगे
behad khoobsurat hai ye gazal,har baat bemisaal hai
हिना से रंगे हाथ इंकिलाब मांगेंगे । वाह
कलम तराश कर रखना हिसाब मांगेंगे
सफों में कैद पड़े ख़त जवाब मांगेंगे ।
तड़पती चाह पर इतनी निगाह तो रखना
सफ़र में प्यासे हमेशा ही आब मांगेंगे ।
बेहतर है ...
मतले ने ही निःशब्द कर दिया..... बहुत सुंदर ग़ज़ल....
बस एक शब्द इस गज़ल के लिये -- लाज़वाब ।
जी हाँ --- लाजवाब
लहूलुहान हुए है यकीन में आकर
दुआ कबूल न होंगी रकाब मांगेंगे ।
waah!
bahut hi badhiya ghazal hai..
jyoti ji ka abhaar aur
aniruddh ji ko badhayee.
हिना से हाथ रंगे इन्किलाब मांगेंगे ।
बहुत खूबसूरत गज़ल्
हवा में दर्द का देखो न शोर बढ़ जाये
हिना से हाथ रंगे इन्किलाब मांगेंगे ।
Waah!! behad khubsurat gazal!
Aaj pahali bar hi aapke blog par aana hua ....aur aapko pad kar yakin maniye dil khush hogaya!! dhanywaad is gazal ke liye!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
हवा में दर्द का देखो न शोर बढ़ जाये
हिना से हाथ रंगे इन्किलाब मांगेंगे.nice................
हवा में दर्द का देखो न शोर बढ़ जाये
हिना से हाथ रंगे इन्किलाब मांगेंगे ।
-वाह! बहुत खूब!
वाह बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण ग़ज़ल प्रस्तुत किया है आपने! बधाई!
bahut khoob...
ati sunder
http://liberalflorence.blogspot.com/
http://sparkledaroma.blogspot.com/
bahot hee achha
एक बेहतरीन गजल अपने में सभी एक से बढ्कर एक ।पूनम
हवा में दर्द का देखो न शोर बढ़ जाये
हिना से हाथ रंगे इन्किलाब मांगेंगे ।
Bahut bhavpurn, dil chhu gayee...
Shubhkamnayen..
ज्योति जी
हवा में दर्द का देखो न शोर बढ़ जाये
हिना से हाथ रंगे इन्किलाब मांगेंगे ।
निश्चित रूप से अनिरुद्ध जी ने तेवर वाला शेर लिखा है.....
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुभकामनायें...... !
achha hai.. bahut achha
बेहतरीन रचना
आभार
कलम तराश कर रखना हिसाब मांगेंगे
सफों में कैद पड़े ख़त जवाब मांगेंगे ।
लहूलुहान हुए है यकीन में आकर
दुआ कबूल न होंगी रकाब मांगेंगे ।
हवा में दर्द का देखो न शोर बढ़ जाये
हिना से हाथ रंगे इन्किलाब मांगेंगे ।
ज्योति जी! इतनी असरदार और जिम्मेदार गजल तक पहुंच मार्ग प्रदान करने के लिए धन्यवाद। भाई अनिरुद्ध को भी इस गजल के लिए हजार बधाइयां
बहुत ही सुन्दर गज़ल. शुभकामनाएं...
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