शनिवार, 24 अप्रैल 2010

सचिन -चालीसा

जय जय सचिन रनों के सागर
कीन्हा भारत नाम उजागर १।
बरसन से क्रिकेट में छाये
दुनिया भर में नाम कमाये २।
हाथ बाल और बैट बिराजै
दाढ़ी मूंछ फ्रेंच कट साजै ३।
महावीर क्रिकेट के संगी
जमते पहने शर्ट तिरंगी ४।
भोली सूरत लगते प्यारे
फैन तुम्हारे तुम पर वारे ५।
पर गंभीर विकेट पर होते
जागरूक हो ,कभी सोते
आपन बैट समारौ आपे
बॉलर सभी हांक ते कांपै। ७।
छोटा कद बन बड़ा दिखाया
बड़ो -बड़ो का किया सफाया ९।
हूपर ने "कुक" तुम्हे बनायो
तुमने उसको पाठ पढ़ायों १०
"शेनवार्न "को मजा चखायो
सपने में तुम्हरो डर खायो ११।
कर्टली कोर्टनी निकट आवे
"सचिन वीर " जब सिक्स लगावै १२।
गेंद हर इक बॉलर की धुन ली
"मुरली "लगे बजाने मुरली १३।
चैन गया "सक़लैन " उदासे
पलटे सचिन मैच के पासे १४।
रन अम्बार तुम्हारे पासा
भारत को तुमसे है आशा १५॥
तुम्हरे पीछे -पीछे "लारा "
उससे बढ़कर तुमने मारा १६॥
सत्तर हंड्रेड खूब बनाये
अर्धशतक अनगिनत जमाये १७॥
रन सहस्त्र बाईस का पर्वत
चढ़ पाये क्या कोई हज़रत ? १८॥
तोड़ रिकॉर्ड कोई पाया
जो पहाड़ सा "सचिन "बनाया १९॥
"कवर -ड्राइव"प्रिय "शॉट" तुम्हारा
'पैडल-शॉट " अचानक मारा २०॥
"कपिल " "गावस्कर " कीन्ह बड़ाई
तुम मम प्रिय "तेंदुलकर " भाई २१॥
नंगे सर ,बल्ला कर माही
शतक मार गये अचरज नाही २२॥
"मास्टर -ब्लास्टर " सही कहाते
फैन प्रशंसा कर अघाते २३॥
कई विकेट भी तुम ले लीन्हा

स्पिन बॉलर अचरज कीन्हा ॥ २४

बड़ो -बड़ो के विकेट उखाड़े

बॉलिंग में भी झंडे गाड़े२५

और क्रिकेटर चित धरई ।

"सचिन "सेई ,बाल जो धुन२६

संकट से तुम सदा बचायो

जब -जब भारत हारत पायो२७

पी पी पेप्सी छक्के मारो

भारत तारो ,भारत तारो२८

तुमसे ही है आस हमारी

लडखडाये अपनी पारी२९

फिर से ऐसा रंग जमा दो

दुनिया भर को "सचिन" दिखा दो३०

तुमसे बढ़कर नही खिलाडी !

दौड़ा दो भारत की गाडी३१

भारत नंबर वन हो पाये

सेहरा तुम्हरे सिर बंध जाये३२

दोहा :-क्रिकेट के संकट -हरन ,शतक जमाओ वीर

रन की मधु बौछार हो ,उड़े गुलाल -अबीर

...........................................................

रचनाकार -राजेश अरोरा

आज सचिन ki सालगिरह है ,इसलिए बधाई के रूप में इसे डाली हूँमैं बाहर हूँ आते ही आपलोग के ब्लॉग पर आऊँगी ,तबतक के माफ़ी चाहती हूँ सभी से





शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010



कातिल का कही किरदार तो है


कागज़ ही सही ,तलवार तो है




तन्हा तो नही हूँ दुनिया में


दुश्मन ही सही ,इक यार तो है




कीमत सही कुछ मेरी यहाँ


बिकने के लिए बाज़ार तो है




काबू में नही कश्ती , सही


हाथो में अभी पतवार तो है




गुर्बत ही सही मेरी लेकिन


रस्ते में कोई दीवार तो है




मंजिल सही नजरो में अभी


कदमो में मिरे रफ़्तार तो है




क्या फ़र्ज़ है चार:गर तेरा


मुफ्लिस ही सही ,बीमार तो है




आँखों में तिरी आँसू ही सही


चेहरे पर कोई इज़हार तो है




कुछ और ही दिल में सही


ख्वाबों का 'ज़मील ' अंबार तो है




,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,


रचनाकार -----'जमील ' हापुड़ी


मंगलवार, 13 अप्रैल 2010

महताब हैदर नकवी जी की रचना



हौसला इतना अभी यार नही कर पाए


खुद को रुसवा सरे -बाज़ार नही कर पाए




दिल में करते रहे दुनिया के सफ़र का समाँ


घर की दहलीज़ मगर पार नही कर पाए




साअते-वस्ल तो काबू में नही थी लेकिन


हिज्र की शब का भी दीदार नही कर पाए




हम किसी और के 'होने 'की नफी क्या करते


अपने 'होने ' पे जब इसरार नही कर पाए




ये तो आराइशे-महफ़िल के लिए है वरना


इल्मो -दानिश का हम इज़हार नही कर पाए


,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,


महताब हैदर नकवी




सोमवार, 5 अप्रैल 2010

छोटी -छोटी दो रचनाये



और ठुकराओ


हम ठोकर बहुत खाये हुए है


मन मेरा मुरझा गया


पर होंठ मुस्काये हुए है


हम मसीहा मौत के खुद बन गये


इसलिए


जिंदगी के क्राँस पर मुद्दत से


लटकाये हुए है


,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,


हँसते -हँसते आज क्यों रोने लगे है लोग


अस्तित्व अपने आप क्यों खोने लगे है लोग ,


रात भर तो वो सूरज को ढूंढते रहे


सुबह हुई तो फिर क्यों सोने लगे है ये लोग


..................................................................