सोमवार, 28 मार्च 2011

बालस्वरूप राही की गजले


लगे जब चोट सीने में हृदय का भान होता है
सहे आघात जो हंसकर वही इंसान होता है

लगाकर कल्पना के पर उड़ा करते सभी नभ पर
शिला से शीश टकराकर मुझे अभिमान होता है

सुबह ' शाम - कर लगाता काल जब चक्कर
धरा दो सांस में क्या है तभी यह ज्ञान होता है

विदा की बात सुनकर मैं बहक जाऊं असंभव है
जिसे रहना सदा वह भी कही मेहमान होता है

अँधेरा रात -भर जग कर गढ़ा करता नया दिनकर
सदा ही नाश के हाथो नया निर्माण होता है

सोमवार, 14 मार्च 2011

अंतर


दोनों शराब पी रहे थे ,
अंतर सिर्फ इतना है
कि
एक ओर उनको हवालात में
बंद कर कहा जा रहा था
"साले
जाने देश का क्या करेंगे !"
और दूसरी ओर
पुलिस अफसर बड़े मैनर्स से
गिलास टकराता हुआ कह रहा था --
"चीयर्स "
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रचनाकार --सपना जायसवाल