शुक्रवार, 18 सितंबर 2009

हुई क्या मुझसे कोई भूल ?

जलाकर आशा के तुम दीप
गए बिखरा क्यो जीवन- फूल ,
सुभग था मेरा वह जीवन
भरी जिसने लाकर यह धूल ,
गए क्यो बिखरा जीवन -फूल
हुई क्या मुझसे कोई भूल ?
खड़ी कब से मन -मन्दिर द्वार
सजीले फूलों का ले हार ,
करोगे कब इसको स्वीकार
करोगे कब इसको स्वीकार ,
साधना की ये अन्तिम भूल
गए क्यो बिखरा जीवन -फूल
हुई क्या मुझसे कोई भूल ?
जहाँ मिल जाए तुमको प्यार
बसा लेना अपना संसार ,
पहन आंसुओं के हार
छुपा लूंगी मैं उर में शूल
भूला देना पथ लेना लीप
उमंगें बन जाए प्रतीक
बाँध पाई मेरी प्रीत
आंक पाये तुम भी भूल

गए क्यो बिखरा जीवन -फूल

हुई क्या मुझसे कोई भूल ?

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रचनाकार ----विवेक सिंह