नीड का निर्माण / हरिवंशराय बच्चन
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्वान फिर-फिर!
वह उठी आँधी कि नभ में
छा गया सहसा अँधेरा,
धूलि धूसर बादलों ने
भूमि को इस भाँति घेरा,
रात-सा दिन हो गया, फिर
रात आई और काली,
लग रहा था अब न होगा
इस निशा का फिर सवेरा,
रात के उत्पात-भय से
भीत जन-जन, भीत कण-कण
किंतु प्राची से उषा की
मोहिनी मुस्कान फिर-फिर!
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्वान फिर-फिर!
वह चले झोंके कि काँपे
भीम कायावान भूधर,
जड़ समेत उखड़-पुखड़कर
गिर पड़े, टूटे विटप वर,
हाय, तिनकों से विनिर्मित
घोंसलो पर क्या न बीती,
डगमगाए जबकि कंकड़,
ईंट, पत्थर के महल-घर;
बोल आशा के विहंगम,
किस जगह पर तू छिपा था,
जो गगन पर चढ़ उठाता
गर्व से निज तान फिर-फिर!
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्वान फिर-फिर!
क्रुद्ध नभ के वज्र दंतों
में उषा है मुसकराती,
घोर गर्जनमय गगन के
कंठ में खग पंक्ति गाती;
एक चिड़िया चोंच में तिनका
लिए जो जा रही है,
वह सहज में ही पवन
उंचास को नीचा दिखाती!
नाश के दुख से कभी
दबता नहीं निर्माण का सुख
प्रलय की निस्तब्धता से
सृष्टि का नव गान फिर-फिर!
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्वान फिर-फिर!
हरिवंशराय बच्चन
10 टिप्पणियां:
बहुत ही सुंदर संदेशपूर्ण कविता तक पहुंचाने के लिए आपका तहेदिल से शुक्रिया,आदरणीय दीदी, बच्चन जी को नमन करते हुए आपको शुभरात्रि ।
बहुत बहुत आभार जिज्ञासा ,तुम्हे भी शुभ प्रभात
हाय, तिनकों से विनिर्मित
घोंसलो पर क्या न बीती,
डगमगाए जबकि कंकड़,
ईंट, पत्थर के महल-घर;
बोल आशा के विहंगम,
किस जगह पर तू छिपा था,
जो गगन पर चढ़ उठाता
गर्व से निज तान फिर-फिर!---बहुत ही सुंदर
हार्दिक आभार संदीप जी 👏👏
मुग्धता बिखेरती सुन्दर सृजन।
हार्दिक आभार
बच्चन जी यादगार कविताओं में से एक है यह कविता मेरे लिए ..हार्दिक आभार ज्योति जी यह कविता साझा करने हेतु ।
बच्चन जी की इतनी सुंदर कविता शेयर करने के लिए धन्यवाद, ज्योति दी।
मेरे पसंदीदा रचनाकार हैं हरिवंश राय जी...रात के उत्पात-भय से
भीत जन-जन, भीत कण-कण
किंतु प्राची से उषा की
मोहिनी मुस्कान फिर-फिर!
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्वान फिर-फिर!...कितना अद्भुत आनंद है इन पंक्तियों में ..आपका आभार ज्योति जी इतनी अच्छी रचना पढ़वाने के लिए
अरसे बाद बच्चन जी की इस कालजयी कविता को आपके सौजन्य से एक बार फिर पढ़ा। हृदय से आभारी हूँ आपका।
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