ज़िन्दगी की हार पर इस कदर मायूस न हो
मौत की ही जीत पर तू खुशियाँ मना ले ।
ईंटे-पत्थरो के महल में सूकून नही होता
एक -दूसरे के दिल में ही तू जगह बना ले ।
बुझ गए है सारे दिए साथ के तेरे
पहचान अगर बनानी है तो ख़ुद को जला ले ।
बुझने से बचा ना पायेगा दिवाली के दिए को
हकीकत के ही अंधेरे से तू घर को सजा ले ।
दिली चाहत है मिटाने की ,जो मज़हब की हदों को
रमजान मना लूँ मैं ,दशहरा तू मना ले ।
दिवाली है नही पूजने को लक्ष्मी की मूर्ति
गृह-लक्ष्मी को तू एक दिन तो लक्ष्मी बना ले ।
दो वक्त दीपक जलाया और लक्ष्मी मिल गई
माँ -बाप के अरमान ऐसे ,काश पूरे हो जाते सही ।
ज़िन्दगी भर पूजा है तन -मन -धन से जिसने तुझे
अब देर न कर उठ ,पूजा की भभूति छोड़कर
जा माँ -बाप के चरणों की थोड़ी धूल लगा ले ।
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रचनाकार -----विवेक सिंह
शुभ -दीपावली