गुरुवार, 26 मई 2011

दो छोटी छोटी रचना


चार बार हमें भूख लगेगी
पांचवी बार
हम कुछ खा लेंगे ,

चार बार प्यास लगेगी
पांचवी बार
हम पानी पी लेंगे ,

चार बार हम जागते रहेंगे
पांचवी बार
आ जायेगी नीँद .
.......................................................
आधा पहाड़ दौड़ाता है

आधा दौडाता है हमारा बोझ

आधा प्रेम दौडाता है

आधा दौडाता है सपना

दौड़ते है हम .
......................................
रचनाकार --------मंगलेश डबराल

24 टिप्‍पणियां:

विशाल ने कहा…

आधा पहाड़ दौड़ाता है
आधा दौडाता है हमारा बोझ
आधा प्रेम दौडाता है
आधा दौडाता है सपना
दौड़ते है हम

poora sach.
alag see rachnaayein par bahut hee khoob,

बेनामी ने कहा…

kya bat hain...gahari soch

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

पथ का चित्रण, गहरा है।

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत खुब जी

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

डबराल साहब की सुंदर रचनाएं पढ़वाने के लिए आभार.

sumati ने कहा…

pehli baar aapke blog per aaya achha laga

sumati

Patali-The-Village ने कहा…

डबराल साहब की सुंदर रचनाएं पढ़वाने के लिए आभार|

Jyoti Mishra ने कहा…

well said !!

वैज्ञानिक प्रार्थना ने कहा…

बहुत सुन्दर और गहरी सोच! साधुवाद!

"कुछ लोग असाध्य समझी जाने वाली बीमारी से भी बच जाते हैं और इसके बाद वे लम्बा और सुखी जीवन जीते हैं, जबकि अन्य अनेक लोग साधारण सी समझी जाने वाली बीमारियों से भी नहीं लड़ पाते और असमय प्राण त्यागकर अपने परिवार को मझधार में छोड़ जाते हैं! आखिर ऐसा क्यों?"

यदि आप इस प्रकार के सवालों के उत्तर जानने में रूचि रखते हैं तो कृपया "वैज्ञानिक प्रार्थना" ब्लॉग पर आपका स्वागत है?

Vivek Jain ने कहा…

बहुत सुंदर प्रस्तुति, वाह
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

Ravi Rajbhar ने कहा…

Bahut khoob.....
kya kya kah diya in pankitiyo ne ... bas sochne wala jaha tak sochle.

शूरवीर रावत ने कहा…

आधा पहाड़ दौड़ाता है
आधा दौडाता है हमारा बोझ
आधा प्रेम दौडाता है
आधा दौडाता है सपना
दौड़ते है हम .
गणितीय द्रष्टि से यह गलत साबित हुआ vivek jee- आधा-आधा चार बार, अर्थात एक से अधिक ........ बहरहाल ! स्वनामधन्य मंगलेश डबराल जी की कविता देकर आपने एक सार्थक पहल की. आभार.

शूरवीर रावत ने कहा…

ज्योति जी माफ़ी चाहूँगा, Jyoti jee की जगह Vivek jee लिख दिया. पुनः आभार.

तरुण भारतीय ने कहा…

बहुत सुन्दर और गहरी सोच! साधुवाद

Sunil Kumar ने कहा…

डबराल साहब की सुंदर रचनाएं पढ़वाने के लिए आभार.

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

डबराल जी की कविता प्रभावित करने वाली है।
इन अच्छी रचनाओं को प्रस्तुत करने के लिए आभार।

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

डबराल जी सुंदर रचनाएं पढ़वाने के लिए आभार...

Urmi ने कहा…

डबराल जी की सुन्दर रचनाएँ पढवाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/

http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

Coral ने कहा…

सुन्दर

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

आधा पहाड़ दौड़ाता है
आधा दौडाता है हमारा बोझ
आधा प्रेम दौडाता है
आधा दौडाता है सपना
दौड़ते है हम

बहुत सुंदर रचना और भाव

निर्मला कपिला ने कहा…

इसी लिये तो आधा जीवन ही जी पाते हैं दोनो रचनायें अच्छी लगी। डबराल साहिब को शुभकामनायें।

Dr Varsha Singh ने कहा…

मंगलेश डबराल जी की सुंदर रचनाएं पढ़वाने के लिए आभार|

नश्तरे एहसास ......... ने कहा…

bahut hi khoob rachnaye pesh kari aapne,dabrail ji ki.aabhar

Sumit Pratap Singh ने कहा…

बहुत खूब...