चार बार हमें भूख लगेगी
पांचवी बार
हम कुछ खा लेंगे ,
चार बार प्यास लगेगी
पांचवी बार
हम पानी पी लेंगे ,
चार बार हम जागते रहेंगे
पांचवी बार
आ जायेगी नीँद .
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आधा पहाड़ दौड़ाता है
आधा दौडाता है हमारा बोझ
आधा प्रेम दौडाता है
आधा दौडाता है सपना
दौड़ते है हम .
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रचनाकार --------मंगलेश डबराल
24 टिप्पणियां:
आधा पहाड़ दौड़ाता है
आधा दौडाता है हमारा बोझ
आधा प्रेम दौडाता है
आधा दौडाता है सपना
दौड़ते है हम
poora sach.
alag see rachnaayein par bahut hee khoob,
kya bat hain...gahari soch
पथ का चित्रण, गहरा है।
बहुत खुब जी
डबराल साहब की सुंदर रचनाएं पढ़वाने के लिए आभार.
pehli baar aapke blog per aaya achha laga
sumati
डबराल साहब की सुंदर रचनाएं पढ़वाने के लिए आभार|
well said !!
बहुत सुन्दर और गहरी सोच! साधुवाद!
"कुछ लोग असाध्य समझी जाने वाली बीमारी से भी बच जाते हैं और इसके बाद वे लम्बा और सुखी जीवन जीते हैं, जबकि अन्य अनेक लोग साधारण सी समझी जाने वाली बीमारियों से भी नहीं लड़ पाते और असमय प्राण त्यागकर अपने परिवार को मझधार में छोड़ जाते हैं! आखिर ऐसा क्यों?"
यदि आप इस प्रकार के सवालों के उत्तर जानने में रूचि रखते हैं तो कृपया "वैज्ञानिक प्रार्थना" ब्लॉग पर आपका स्वागत है?
बहुत सुंदर प्रस्तुति, वाह
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
Bahut khoob.....
kya kya kah diya in pankitiyo ne ... bas sochne wala jaha tak sochle.
आधा पहाड़ दौड़ाता है
आधा दौडाता है हमारा बोझ
आधा प्रेम दौडाता है
आधा दौडाता है सपना
दौड़ते है हम .
गणितीय द्रष्टि से यह गलत साबित हुआ vivek jee- आधा-आधा चार बार, अर्थात एक से अधिक ........ बहरहाल ! स्वनामधन्य मंगलेश डबराल जी की कविता देकर आपने एक सार्थक पहल की. आभार.
ज्योति जी माफ़ी चाहूँगा, Jyoti jee की जगह Vivek jee लिख दिया. पुनः आभार.
बहुत सुन्दर और गहरी सोच! साधुवाद
डबराल साहब की सुंदर रचनाएं पढ़वाने के लिए आभार.
डबराल जी की कविता प्रभावित करने वाली है।
इन अच्छी रचनाओं को प्रस्तुत करने के लिए आभार।
डबराल जी सुंदर रचनाएं पढ़वाने के लिए आभार...
डबराल जी की सुन्दर रचनाएँ पढवाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
सुन्दर
आधा पहाड़ दौड़ाता है
आधा दौडाता है हमारा बोझ
आधा प्रेम दौडाता है
आधा दौडाता है सपना
दौड़ते है हम
बहुत सुंदर रचना और भाव
इसी लिये तो आधा जीवन ही जी पाते हैं दोनो रचनायें अच्छी लगी। डबराल साहिब को शुभकामनायें।
मंगलेश डबराल जी की सुंदर रचनाएं पढ़वाने के लिए आभार|
bahut hi khoob rachnaye pesh kari aapne,dabrail ji ki.aabhar
बहुत खूब...
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