मित्रो, इस ब्लौग में मैं मेरे पसंदीदा रचनाकारों की रचनायें प्रस्तुत करूंगी, जो निश्चित रूप से आपको भी पसन्द आयेंगी.
शुक्रवार, 18 जून 2010
दिल की दहलीज़ पे यादो के दिए रक्खे है
दिल की दहलीज़ पे यादो के दिए रक्खे है
आज तक हमने ये दरवाजे खुले रक्खे है ।
इस कहानी के वो किरदार कहाँ से लाऊं
वही दर्या है ,वही कच्चे घड़े रक्खे है ।
हम पे जो गुजरी ,न बताया , न बतायेंगे कभी
कितने ख़त अब भी तेरे नाम लिखे रक्खे है ।
आपके पास खरीदारी की कुव्वत है अगर
आज सब लोग दुकानों में सजे रक्खे है ।
...............................................................
रचनाकार -----------बशीर 'बद्र '
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो ।
न जाने किस गली में जिंदगी की शाम हो जाये । ।
इस मशहूर शेर को कहने वाले आप ही है ,आपको कौन नही जानता ,आप को किसी और पहचान की जरूरत नही ,एक नाम ही काफी है ।
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15 टिप्पणियां:
इस कहानी के वो किरदार कहाँ से लाऊं
वही दर्या है ,वही कच्चे घड़े रक्खे है ...
वही दरिया है , वही कच्चे घड़े हैं ...सोहनी महिवाल से किरदार मगर कहाँ है ...
आपके पास खरीदारी की कुव्वत है अगर
आज सब लोग दुकानों में सजे रक्खे है ...
आभार ...!!
आप का धन्यवाद इन सुंदर गजलो को हम तक पहुचाने के लिये
sundar gajal..........:)
दिल की दहलीज़ पे यादो के दिए रक्खे है
आज तक हमने ये दरवाजे खुले रक्खे है ।
बहुत खूब कहा है.
आपका संग्रह लाजवाब है। बहुत खूब।
wah wah behetarien...
log on http://doctornaresh.blogspot.com/
m sure u will like it !!!
Ujale apni yadon ke hamre satha rahane do ...na jane kis gali me jindagi ki sham ho jaye...
Mai bachpan se aap ka fan raha hoo...Regards
Lines Tell the Story of Life "Love Marriage Line in Palm"
बहुत ही सुन्दर और लाजवाब ग़ज़ल रहा! बढ़िया लगा!
इस कहानी के वो किरदार कहाँ से लाऊं
वही दर्या है ,वही कच्चे घड़े रक्खे है
आपके पास खरीदारी की कुव्वत है अगर
आज सब लोग दुकानों में सजे रक्खे है ।
in dono sheron se kitna dard tapak rahaa hai ...jaise shayar ke sath ham bhi inhen jee aaye hon .
bahut hi sunder
http://liberalflorence.blogspot.com/
http://sparkledaroma.blogspot.com/
'आपके पास खरीदारी की कुव्वत है अगर
आज सब लोग दुकानों में सजे रक्खे है ।.
- जो इन दुकानों पर उपलब्ध नहीं, वे कबाड़खाने में पड़े हैं.
बद्र साहब की एक अच्छी रचना
हम पे जो गुजरी ,न बताया , न बतायेंगे कभी
कितने ख़त अब भी तेरे नाम लिखे रक्खे है ।
waah
अंतर्द्वन्द दिखाने वाले का अंतर्द्वन्द
शानदार रचना
ज्योति जी,
नमस्ते!
बशीर साब से कभी मिले तो नहीं पर ये सोच के खुश हो लेते हैं के मेरे शहर मेरठ से ताल्लुक रखते हैं!
.............ना जाने किस मोड़ पर ज़िंदगी की शाम आ जाये!
आभार!
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