हौसला इतना अभी यार नही कर पाए
खुद को रुसवा सरे -बाज़ार नही कर पाए ।
दिल में करते रहे दुनिया के सफ़र का समाँ
घर की दहलीज़ मगर पार नही कर पाए ।
साअते-वस्ल तो काबू में नही थी लेकिन
हिज्र की शब का भी दीदार नही कर पाए ।
हम किसी और के 'होने 'की नफी क्या करते
अपने 'होने ' पे जब इसरार नही कर पाए ।
ये तो आराइशे-महफ़िल के लिए है वरना
इल्मो -दानिश का हम इज़हार नही कर पाए ।
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महताब हैदर नकवी
10 टिप्पणियां:
sunadar rachna
bahut khub
shkhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
महताब हैदर नकवी जी की बेहतरीन रचना पढ़वाने का आभार.
sundar aati sundar rachana hai
Sahee hai, kitni baatein dil hi dil mein dum tod deti hain!
Sadhuwad!
बढीया
अच्छी गज़ल पढ़ाने के लिए आभार।
नकवी जी की इस रचना के भाव शायद आपके ही हैं ! बेहतरीन ग़ज़ल पढवाने के लिए आभार !
नक़वी साहब की उम्दा ग़ज़ल पढ़वाने के लिये शुक्रिया ज्योति जी.
बहुत सुन्दर रचना । पढ़वाने के लिये शुक्रिया ।
बहुत बढ़िया ! महताब हैदर नकवी जी की शानदार रचनाएँ पढ़वाने के लिए धन्यवाद!
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