परहित हमारा प्रथम चरण हो ।
स्वर्ग से बढ़कर होगा
उस सुख का अहसास ,
जिस सभ्यता -संस्कृति को लेकर
चला आ रहा इतिहास ।
लिए प्रतिशोध की भावनायें
मन में ,
न करो हनन , मानवता का आज ।
हृदय उदार हो ,मन विशाल हो ,
ऊँचे रक्खो विचार ।
जीवन सादा-सच्चा हो ,
दृढ़ता का परिचायक बनकर
साधो जीने का आधार ।
'दोष ' हम सभी में है
परन्तु
दोष मुक्त होने का
करते रहो प्रयास ।
फिर सफलता कदम चूमेगी ,
मंजिल होगी पास ।
पतझड़ में भी उमीदो की
रख मन में आस ।
करो भलाई औरो की
फ़र्ज़ का करके ध्यान ।
फल की इच्छा न कर आगे
कर्म तेरा प्रधान ।
दृढ़ शक्ति तू मन में ले ,
जगा नया विश्वाश ।
प्रस्फुटित होंगी फिर सारी किरणे
लेकर नया प्रकाश ।
। रचनाकार --ज्योति सिंह