मंगलवार, 13 अप्रैल 2010

महताब हैदर नकवी जी की रचना



हौसला इतना अभी यार नही कर पाए


खुद को रुसवा सरे -बाज़ार नही कर पाए




दिल में करते रहे दुनिया के सफ़र का समाँ


घर की दहलीज़ मगर पार नही कर पाए




साअते-वस्ल तो काबू में नही थी लेकिन


हिज्र की शब का भी दीदार नही कर पाए




हम किसी और के 'होने 'की नफी क्या करते


अपने 'होने ' पे जब इसरार नही कर पाए




ये तो आराइशे-महफ़िल के लिए है वरना


इल्मो -दानिश का हम इज़हार नही कर पाए


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महताब हैदर नकवी




10 टिप्‍पणियां:

  1. sunadar rachna


    bahut khub

    shkhar kumawat

    http://kavyawani.blogspot.com/

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  2. महताब हैदर नकवी जी की बेहतरीन रचना पढ़वाने का आभार.

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  3. नकवी जी की इस रचना के भाव शायद आपके ही हैं ! बेहतरीन ग़ज़ल पढवाने के लिए आभार !

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  4. नक़वी साहब की उम्दा ग़ज़ल पढ़वाने के लिये शुक्रिया ज्योति जी.

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  5. बहुत सुन्दर रचना । पढ़वाने के लिये शुक्रिया ।

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  6. बहुत बढ़िया ! महताब हैदर नकवी जी की शानदार रचनाएँ पढ़वाने के लिए धन्यवाद!

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