मित्रो, इस ब्लौग में मैं मेरे पसंदीदा रचनाकारों की रचनायें प्रस्तुत करूंगी, जो निश्चित रूप से आपको भी पसन्द आयेंगी.
सोमवार, 25 अप्रैल 2011
एक और रचना राही जी की
ज्ञान ध्यान कुछ काम न आये
हम तो जीवन -भर अकुलाये ,
पथ निहारते दृग पथराये
हर आहट पर मन भरमाये ,
झूठे जग में सच्चे सुख की
क्या तो कोई आस लगाये ।
देवालय हो या मदिरालय
जहां गये जाकर पछताए ।
तड़क -भड़क संतो की ऐसी
दुनियादार देख शरमाए ।
माल लूट का सबने बांटा
हम ही पड़े रहें अलसाए ।
जो बिक जाता धन्य वही है
जो न बिके मूरख कहलाये ।
टिकट बांटने के नाटक में
धूर्त महानायक बन छाये ।
शिष्टाचार भ्रष्टता दोनों -
ने अपने सब द्वैत मिटाए ।
जहां बिछी शतरंज वही ही
शातिर बैठे जाल बिछाए ।
अब के यू खैरात बँटी है
सारा किस्सा दिल बहलाए ।
दुर्जन पार लगाता नैया
सज्जन किसका काम बनाये ।
राही तो सीधे - सादे है
कौन भला क्या उनसे पाये ।
शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011
ग़ज़ल
उनके वादे कल के है
हम मेहमाँ दो पल के है ,
कहने को दो पलके है
कितने सागर छलके है ,
मदिरालय की मेजो पर
सौदे गंगा जल के है ,
नई सुबह के क्या कहने
ठेकेदार धुंधलके है ,
जो आधे में छूटी हम
मिसरे उसी गजल के है ,
बिछे पाँव में किस्मत है
टुकड़े तो मखमल के है ,
रेत भरी है आँखों में
सपने ताजमहल के है ,
क्या दिमाग का हाल कहे
सब आसार खलल के है ,
सुने आपकी राही कौन
आप भला किस दल के है ।
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किसी ने निवेदन किया था राही जी के बारे में लिखू सो कुछ शब्द उनके लिए लिख रही हूँ ।
बाल स्वरुप राही हिंदी गजल और गीत के एक ऐसे पुख्ताकलम रचनाकार है जिन्होंने गत पच्चास वर्षो में अपनी रचनाओ द्वारा जहां एक ओर हिंदी ग़ज़ल और गीत को स्तर ,प्रतिष्ठा और एतबार बख्शा है ,वही दूसरी ओर इन्होने हिंदी के छंद -काव्य को ऐसे समय में समृद्ध करने का कार्य किया है जब वह विभिन्न कव्यान्दोलानो के चलते अपनी साख खोने लगा लगा था । स्पष्ट है कि ये दोनों कार्य अपना विशेष महत्व रखते है ।
गुरुवार, 7 अप्रैल 2011
राही को समझाए कौन
जो बात मेरे कान में ख्वाबो ने कही है
वो बात हमेशा ही गलत हो के रही है ।
जो चाहो लिखो नाम मेरे सब है मुनासिब
उनकी ही अदालत है यहाँ जिनकी बही है ।
टपका जो लहू पाँव से मेरे तो वो चीखे
कल जेल से भागा था जो मुजरिम वो वही है ।
वो चाहे मेरी जीभ मेरे हाथ पर रख दे
मैं फिर भी कहूँगा कि सही बात सही है ।
इक दोस्त से मिलने के लिए कब से खड़ा हूँ
कूचा भी वही ,घर भी वही ,दर भी वही है ।
उम्मीद की जिस छत के तले राही रुका मैं
वो छत ही क़यामत की तरह सिर पे ढही है ।
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एक और रचना बालस्वरूप राही जी की आप सभी के लिए ,उम्मीद नही यकीन है मुझे पसंद आई है ,आपको भी जरूर आएगी .
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