और न ठुकराओ
हम ठोकर बहुत खाये हुए है ।
मन मेरा मुरझा गया
पर होंठ मुस्काये हुए है ।
हम मसीहा मौत के खुद बन गये
इसलिए
जिंदगी के क्राँस पर मुद्दत से
लटकाये हुए है ।
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हँसते -हँसते आज क्यों रोने लगे है लोग
अस्तित्व अपने आप क्यों खोने लगे है लोग ,
रात भर तो वो सूरज को ढूंढते रहे
सुबह हुई तो फिर क्यों सोने लगे है ये लोग ।
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15 टिप्पणियां:
रात भर तो वो सूरज को ढूंढते रहे
सुबह हुई तो फिर क्यों सोने लगे है ये लोग
बहुत खूब!
दोनो कविताये बहुत सुंदर लगी जी
bahut sundar rachna
baki tarif Udan Tashtari ji ne kar di
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है .
और न ठुकराओ
हम ठोकर बहुत खाये हुए है ।
मन मेरा मुरझा गया
पर होंठ मुस्काये हुए है ।
Kabhi-kabhi vikat prasthitiyon mein bhi hoton par muskan barkarar rakhana hi padhta hai....
हम मसीहा मौत के खुद बन गये
इसलिए जिंदगी के क्राँस पर मुद्दत से
लटकाये हुए है ।
kahin n kahin to kuch galtiyon ke liy hum hi jimedaar rahate hain....
Jindagi ke gahre bhav.....
Bahut shubhkamnyen
vaah khoob
dono hi rachnaye behad khoobsurat lagi-----bahut khoob.
"और न ठुकराओ
हम ठोकर बहुत खाये हुए है ।
मन मेरा मुरझा गया
पर होंठ मुस्काये हुए है । "
vaastavikta si dikhaati rachnaaye dono hi.....
kunwar ji,
बहुत ख़ूबसूरत कविताये लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! लाजवाब प्रस्तुती! बहुत बहुत बधाई!
दूसरी कविता बहुत अच्छी लगी.
वाह जी वाह ... बहुत सुन्दर रचना है दोनों ही ... खास कर दूसरी कविता बहुत अच्छी लगी !
बहुत अच्छी प्रस्तुति है....रचनाकार का नाम भी लिख दें तो बहुत अच्छा रहेगा
दोनों रचनाएं बहुत अच्छी रहीं
हँसते -हँसते आज क्यों रोने लगे है लोग
अस्तित्व अपने आप क्यों खोने लगे है लोग...
इस शेर पर ढेर सारी दाद कबूल फ़रमायें
behad khoobsurat post badhai.
poonam
सुन्दर रचना....
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