मंगलवार, 2 मार्च 2021

हिंदी है भारत की बोली

1. हिंदी है भारत की बोली

दो वर्तमान का सत्य सरल,
सुंदर भविष्य के सपने दो
हिंदी है भारत की बोली
तो अपने आप पनपने दो

यह दुखड़ों का जंजाल नहीं,
लाखों मुखड़ों की भाषा है
थी अमर शहीदों की आशा,
अब जिंदों की अभिलाषा है
मेवा है इसकी सेवा में,
नयनों को कभी न झंपने दो
हिंदी है भारत की बोली
तो अपने आप पनपने दो

क्यों काट रहे पर पंछी के,
पहुंची न अभी यह गांवों तक
क्यों रखते हो सीमित इसको
तुम सदियों से प्रस्तावों तक
औरों की भिक्षा से पहले,
तुम इसे सहारे अपने दो
हिंदी है भारत की बोली
तो अपने आप पनपने दो

श्रृंगार न होगा भाषण से
सत्कार न होगा शासन से
यह सरस्वती है जनता की
पूजो, उतरो सिंहासन से
इसे शांति में खिलने दो
संघर्ष-काल में तपने दो
हिंदी है भारत की बोली
तो अपने आप पनपने दो

जो युग-युग में रह गए अड़े
मत उन्हीं अक्षरों को काटो
यह जंगली झाड़ न, भाषा है,
मत हाथ पांव इसके छांटो
अपनी झोली से कुछ न लुटे
औरों का इसमें खपने दो
हिंदी है भारत की बोली
तो आपने आप पनपने दो

इसमें मस्ती पंजाबी की,
गुजराती की है कथा मधुर
रसधार देववाणी की है,
मंजुल बंगला की व्यथा मधुर
साहित्य फलेगा फूलेगा
पहले पीड़ा से कंपने दो
हिंदी है भारत की बोली
तो आपने आप पनपने दो

नादान नहीं थे हरिश्चंद्र,
मतिराम नहीं थे बुद्धिहीन
जो कलम चला कर हिंदी में
रचना करते थे नित नवीन
इस भाषा में हर ‘मीरा’ को
मोहन की माल जपने दो
हिंदी है भारत की बोली
तो अपने आप पनपने दो

प्रतिभा हो तो कुछ सृष्टि करो
सदियों की बनी बिगाड़ो मत
कवि सूर बिहारी तुलसी का
यह बिरुवा नरम उखाड़ो मत
भंडार भरो, जनमन की
हर हलचल पुस्तक में छपने दो
हिंदी है भारत की बोली
तो अपने आप पनपने दो

मृदु भावों से हो हृदय भरा
तो गीत कलम से फूटेगा
जिसका घर सूना-सूना हो
वह अक्षर पर ही टूटेगा
अधिकार न छीनो मानस का
वाणी के लिए कलपने दो
हिंदी है भारत की बोली
तो अपने आप पनपने दो

बढ़ने दो इसे सदा आगे
हिंदी जनमत की गंगा है
यह माध्यम उस स्वाधीन देश का
जिसकी ध्वजा तिरंगा है
हों कान पवित्र इसी सुर में
इसमें ही हृदय तड़पने दो
हिंदी है भारत की बोली
तो अपने आप पनपने दो । 

कवि -  गोपाल सिंह नेपाली 

संगीता स्वरूप जी के अनुरोध पर इस रचना को आप सभी से सांझा कर रही हूँ , 
संगीता जी क्या यही रचना है, नेपाली जी की हिंदी भाषा पर लिखी हुई, यदि ऐसा हुआ तो मैं आपकी आभारी रहूँगी , साथ ही इस बात की भी खुशी होगी कि आपकी इच्छा का मान रखने मे सफल हो सकी। धन्यबाद 

9 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत खूब कहा है आपने ।

Dr Varsha Singh ने कहा…

आपने आदरणीया संगीता जी से पूछा है किन्तु मैं कुछ कहने की घृष्टता करना चाहूंगी क्षमायाचना सहित ....

यह गीत गोपाल सिंह नेपाली (1911 - 1963) का ही है, वे हिन्दी एवं नेपाली के प्रसिद्ध कवि थे। उनका मूल नाम गोपाल बहादुर सिंह था। उन्होने बॉलीवुड हिन्दी फिल्मों के लिये गाने भी लिखे हैं। वे एक पत्रकार भी थे जिन्होने "रतलाम टाइम्स", चित्रपट, सुधा, एवं योगी नामक चार पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। सन् 1962 के चीनी आक्रमण के समय उन्होने कई देशभक्तिपूर्ण गीत एवं कविताएं लिखीं जिनमें 'सावन', 'कल्पना', 'नीलिमा', 'नवीन कल्पना करो' आदि बहुत प्रसिद्ध हैं।

इसे हम सबसे साझा करने के लिए आभार आपका 🙏
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह

ज्योति सिंह ने कहा…

शुक्रिया संजय हार्दिक आभार

ज्योति सिंह ने कहा…

तहे दिल से शुक्रिया वर्षा जी, मुझे बेहद खुशी हो रही है कि आपसे गोपाल जी के बारे में इतना कुछ जानने को मिला ,मैं तो चाहती हूँ कि रचना के साथ साथ सब रचनाकार के जीवन के बारे में भी जाने, साथ ही मैं भी जानू,आप बहुत ही अच्छा लिखती हैं, आप ऐसा न कहे , आप आदरणीय है ,कुछ बताना, सिखाना धृष्टता नही, ज्ञान को बढ़ाना, मार्गदर्शन करना है, ये मेरा सौभाग्य है कि मुझे आप से कवि गोपाल जी के बारे में इतनी अहम बातें जानने को मिली , हार्दिक आभार ,बहुत बहुत धन्यबाद वर्षा जी,

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

वाह ज्योति । आनंद आ गया । यह कविता करीब 25 साल पहले सुनी थी । बहुत इच्छा थी कि इस कविता को पढ़ सकूँ । आज तुम्हारी वजह से यह इच्छा पूरी हुई है ।बहुत बड़ा वाला शुक्रिया । और फिर सोने पर सुहागा की वर्षा जी ने इतनी विस्तृत जानकारी दे कर हमें और समृद्ध कर दिया । आभार ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

क्षमा सहित कि बिना पूछे मैंने यह कविता कॉपी कर अपने पास सेव कर ली है ।

ज्योति सिंह ने कहा…

कवि की रचना पर सभी पाठकों का बराबर का अधिकार होता है, वैसे भी संगीता जी आपके लिए ही पोस्ट की है इसे आप अवश्य अपने पास सेव कर ले, मुझे तो बहुत खुशी मिल रही है, आप को कुछ दे पाई । धन्यबाद

Jyoti Dehliwal ने कहा…

बहुत सुंदर कविता साझा करने के लिए धन्यवाद, ज्योति दी।

KUMMAR GAURAV AJIITENDU ने कहा…

Sundar kavita