शुक्रवार, 4 सितंबर 2015

पथ की पहचान

पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले। पुस्तकों में है नही छापी गई इसकी कहानी हाल इसका ज्ञात होता है न औरों की ज़बानी अनगिनत राही गए इस राह से उनका पता क्या पर गए कुछ लोग इस पर छोड पैरौं की निशानी यह निशानी मूक होकर भी बहुत कुछ बोलती है खोल इसका अर्थ पंथी पंथ का अनुमान कर ले। पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले। यह बुरा है या कि अच्छा व्यर्थ दिन इस पर बिताना अब असंभव छोड़ यह पथ दूसरे पर पग बढ़ाना तू इसे अच्छा समझ यात्रा सरल इससे बनेगी सोंच मत केवल तुझे ही यह पड़ा मन में बिठाना हर सफल पंथी यही विश्वास ले इस पर बढ़ा है तू इसी पर आज अपने चित का अवधान कर ले। पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान करले। है अनिश्चित किस जगह पर सरित गिरि गहवर मिलेंगें है अनिश्चित किस जगह पर बाग बन सुंदर मिलेंगे। किस जगह यात्रा खतम हो जाएगी यह भी अनिश्चित है अनिश्चित कब सुमन कब कंटकों के शर मिलेंगे कौन सहसा छूट जाएँगे मिलेंगे कौन सहसा आ पड़े कुछ भी रुकेगा तू न ऐसी आन कर ले। पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले। हरीवंश राय बच्चन

6 टिप्‍पणियां:

Shanti Garg ने कहा…

बहुत ही उम्दा भावाभिव्यक्ति....
आभार!
इसी प्रकार अपने अमूल्य विचारोँ से अवगत कराते रहेँ।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

Unknown ने कहा…

हाई स्कुल में पढ़ी थी यह कविता आज फिर पढ़ कर अच्छा लगा .......... आभार
http://savanxxx.blogspot.in

देशवाली ने कहा…

बूढ़ा इंतज़ार
उस टीन के छप्पर मैं
पथराई सी दो बूढी आंखें

एकटक नजरें सामने
दरवाजे को देख रही थी

चेहरे की चमक बता रही है
शायद यादों मैं खोई है

एक छोटा बिस्तर कोने में
सलीके से सजाया था

रहा नहीं गया पूछ ही लिया
अम्मा कहाँ खोई हो

थरथराते होटों से निकला
आज शायद मेरा गुल्लू आएगा

कई साल पहले कमाने गया था
बोला था "माई'' जल्द लौटूंगा

आह : .कलेजा चीर गए वो शब्द
जो उन बूढ़े होंठों से निकले।

Unknown ने कहा…

लाजवाब...

Bharat Bhushan ने कहा…

बहुत समय पहले यह कविता पढ़ी थी. आज उसकी फिर से स्मृति हो आई. आपका आभार.

अनीता सैनी ने कहा…

बहुत बढ़िया आदरणीय दी।