मित्रो, इस ब्लौग में मैं मेरे पसंदीदा रचनाकारों की रचनायें प्रस्तुत करूंगी, जो निश्चित रूप से आपको भी पसन्द आयेंगी.
शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011
ग़ज़ल
उनके वादे कल के है
हम मेहमाँ दो पल के है ,
कहने को दो पलके है
कितने सागर छलके है ,
मदिरालय की मेजो पर
सौदे गंगा जल के है ,
नई सुबह के क्या कहने
ठेकेदार धुंधलके है ,
जो आधे में छूटी हम
मिसरे उसी गजल के है ,
बिछे पाँव में किस्मत है
टुकड़े तो मखमल के है ,
रेत भरी है आँखों में
सपने ताजमहल के है ,
क्या दिमाग का हाल कहे
सब आसार खलल के है ,
सुने आपकी राही कौन
आप भला किस दल के है ।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
किसी ने निवेदन किया था राही जी के बारे में लिखू सो कुछ शब्द उनके लिए लिख रही हूँ ।
बाल स्वरुप राही हिंदी गजल और गीत के एक ऐसे पुख्ताकलम रचनाकार है जिन्होंने गत पच्चास वर्षो में अपनी रचनाओ द्वारा जहां एक ओर हिंदी ग़ज़ल और गीत को स्तर ,प्रतिष्ठा और एतबार बख्शा है ,वही दूसरी ओर इन्होने हिंदी के छंद -काव्य को ऐसे समय में समृद्ध करने का कार्य किया है जब वह विभिन्न कव्यान्दोलानो के चलते अपनी साख खोने लगा लगा था । स्पष्ट है कि ये दोनों कार्य अपना विशेष महत्व रखते है ।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
21 टिप्पणियां:
सुने आपकी राही कौन
आप भला किस दल के है ।
यह बात तो आजकल हर जगह सच हो रही है। सुन्दर रचना से परिचय कराने का धन्यवाद!
सुन्दर,सुन्दर,अति सुन्दर प्रस्तुति.राही जी के बारे में जानकारी देने के लिए आभार आपका.
कहने को दो पलके है
कितने सागर छलके है ,
पहली बार पढ़ी इतनी गहरी अभिव्यक्ति।
कहने को दो पलके है
कितने सागर छलके है
कम शब्दों में भावों के समुद्र में डुबो गयी ये पंक्तिया .
ज्योति जी,
राही जी के बारे में बता कर कृतार्थ किया है आपने.
एक और सुन्दर ग़ज़ल.
उनके वादे कल के है
हम मेहमाँ दो पल के है ,
मदिरालय की मेजो पर
सौदे गंगा जल के है ,
रेत भरी है आँखों में
सपने ताजमहल के है ,
बहुत ही खूब.
रेत भरी है आँखों में
सपने ताजमहल के है
छोटी बहर की ख़ूबसूरत और मुकम्मल ग़ज़ल....
आपका आभार.
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
बिछे पाँव में किस्मत है
टुकड़े तो मखमल के है.
रेत भरी है आँखों में
सपने ताजमहल के है.
क्या खूब कहा है.
रेत भरी है आँखों में
सपने ताजमहल के है ।
राही जी के कलाम का जवाब नहीं ।
उनकी रचना प्रस्तुत करने के लिए आभार।
बहुत अच्छी पोस्ट, शुभकामना, मैं सभी धर्मो को सम्मान देता हूँ, जिस तरह मुसलमान अपने धर्म के प्रति समर्पित है, उसी तरह हिन्दू भी समर्पित है. यदि समाज में प्रेम,आपसी सौहार्द और समरसता लानी है तो सभी के भावनाओ का सम्मान करना होगा.
यहाँ भी आये. और अपने विचार अवश्य व्यक्त करें ताकि धार्मिक विवादों पर अंकुश लगाया जा सके., हो सके तो फालोवर बनकर हमारा हौसला भी बढ़ाएं.
मुस्लिम ब्लोगर यह बताएं क्या यह पोस्ट हिन्दुओ के भावनाओ पर कुठाराघात नहीं करती.
नई सुबह के क्या कहने
ठेकेदार धुंधलके है ,
जो आधे में छूटी हम
मिसरे उसी गजल के है ,
सभी शेर लाजवाब हैं...हार्दिक बधाई।
बहुत अच्छी रचना पेश की है ज्योति जी, शुक्रिया.
अद्भुत प्रभावोद्पाकता हैं क्षणिकाओं में जो अगरचे अलग हैं मगर इनका सिनेर्जिक प्रभाव काफी गहरा है -राही जी निश्चय ही गहरी अनुभूति के रचनाकार हैं !
achi gajal sunaane ka dhnyavad......
सुने आपकी राही कौन
आप भला किस दल के है ।
बहुत सुन्दर गज़ल परिचय कराने का धन्यवाद!
गहरी अभिव्यक्ति।बहुत खूब.
अच्छी ग़ज़ल ,अच्छी प्रस्तुति. वाह.
पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ है...
रेत भरी है आँखों में
सपने ताजमहल के है --- खूबसूरत.
सुने आपकी राही कौन,
आप भला किस दल के हैं।
आपकी अभिव्यक्ति की जितनी भी प्रशंसा की जाए वह थोडी है। मन को झकझोरती पोस्ट अच्छी लगी। धन्यवाद।
बहुत सुंदर ..
वाह क्या बात कहीं है ...
बेहतरीन ..ये शेर खासकर दिल को छू गए
उनके वादे कल के है
हम मेहमाँ दो पल के है ,
कहने को दो पलके है
कितने सागर छलके है ,
मदिरालय की मेजो पर
सौदे गंगा जल के है ,
एक टिप्पणी भेजें