मंगलवार, 20 जुलाई 2010

उधारी बंद क्यों ?


लिखकर रखो ,
बाद में देता हूँ !
भेज देता हूँ ,
आके लेके जा !
भरोसा नही है क्या ?
कल देता हूँ ,
सुबह देता हूँ ,
पहेचान नही है क्या ?
पगार हुआ नही ?
भाग के जाऊँगा क्या ?
चेक बुक नही है !
घर में शादी है !
माँ बिमार है !
बैंक बंद है !
क्या करने का कर !
इसलिए उधारी बंद है ........ ।
.............................................
मैं अभी पुणे गयी तो एक दुकान में यह ग्राहकों के लिए विशेष रूप से लिख कर सामने रक्खा गया था ,और मैं सोची इसे आप सभी से साझा करूंगी ,क्योंकि हम अक्सर मिलने वाले फायदे को अपनी लापरवाही में गवां देते है और दूसरे को फिर कोसते है ,बजाये अपनी गलती को समझने के . देने वाला अक्सर अपराधी हो जाता है और उल्टा नम्र भी ,परन्तु लेने वाला सीना ताने अपनी जुबान का भी लिहाज नही करता ,प्रकृति के इस विचत्र रवैये को अच्छाई जरा भी नही समझ पाई , इस कारण बचाव व शान्ति के लिए ऐसे तरीके अपनाने को विवश हुई और जज्बाती न होकर प्रायोगिक बनने लगी .आदमी मिलने वाली सुविधाओ को अपने ही पैरों से ठोकर मार देता है ,इसमें बेकसूर को भी वेवजह शामिल होना पड़ता है ।

15 टिप्‍पणियां:

अजय कुमार ने कहा…

आज नगद ,कल उधार

Udan Tashtari ने कहा…

सही कहा आपने.

वाणी गीत ने कहा…

ऐसा भी होता है ..!

Parul kanani ने कहा…

ekdam sahi :)

SATYA ने कहा…

bilkul sahi kaha aapne.

राज भाटिय़ा ने कहा…

बेशर्म तो फ़िर भी मांगने आते होंगे.... बहुत सुंदर जी

निर्मला कपिला ने कहा…

बिलकुल सही कहा आपने। उधार लेने मे वैसे भी बरकत नही होती है। लेकिन हम लोग इस छोटी सी बात को समझ नही पाते। आभार।

नीरज गोस्वामी ने कहा…

बहुत खरी खरी बातें नोट करके लायीं हैं आप...वाह..
नीरज

शरद कोकास ने कहा…

कई लोग टिप्पणी के लिये भी ऐसा ही कहते हैं ...

अरुणेश मिश्र ने कहा…

नगद डिस्को ।
उधार खिसको ।

Urmi ने कहा…

आपने बिल्कुल सही लिखा है और मैं आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ! उम्दा प्रस्तुती!

Dr. Tripat Mehta ने कहा…

bilkul sahi kaha hai aapne :)

http://liberalflorence.blogspot.com/

निर्झर'नीर ने कहा…

lol nice

Smart Indian ने कहा…

सही है.

Unknown ने कहा…

Ha