रविवार, 4 जुलाई 2010

अंगारे पर नंगे पाँव से ली गयी रचना है ....


खुली किताब के शामो -सहर भी आयेंगे
भरी दुपहर में तारे नज़र भी आयेंगे

जला के कोई ना रक्खे चिराग गलियों में
लुटेरे लूटने शायद इधर भी आयेंगे

अभी हाथ ही काटे गये है सपनो के
जमीन पे टूटकर ख्वाबों के सर भी आएँगे

जो शख्स देर तक उलझा रहेगा काँटों में
उसी के हाथ में तितली के पर भी आयेंगे

बस अपनी रूह के जख्मों को तुम हरा रखना
सफ़र में सैकड़ों सूखे शजर भी आयेंगे

चलो गुनाह के पत्थर ही जेब में रख ले
सुना है राह में शीशे के घर भी आएँगे

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रचनाकार -------माधव कौशिक

13 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

माधव कौशिक जी की रचना पसंद आई, आभार!

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

अभी तो हाथ ही काटे गये है सपनो के
जमीन पे टूटके ख्वाबों के सर भी आएँगे ।

बहुत बढ़िया!
पूरी ग़ज़ल बहुत सुंदर

राज भाटिय़ा ने कहा…

माधव कौशिक जी की इस सुंदर रचना के लिये आप का ओर माधव जी का धन्यवाद

निर्मला कपिला ने कहा…

जो शख्स देर तक उलझा रहेगा काँटों में
उसी के हाथ में तितली के पर भी आयेंगे ।

बस अपनी रूह के जख्मों को तुम हरा रखना
सफ़र में सैकड़ों सूखे शजर भी आयेंगे ।

चलो गुनाह के पत्थर ही जेब में रख ले
सुना है राह में शीशे के घर भी आएँगे ।
ये तीनो शेर लाजवाब हैं कौशक जी को बधाई। आपका धन्यवाद।

शरद कोकास ने कहा…

यह पत्थर और शीशे के घर का प्रयोग जितनी भी बार हो बुरा नहीं लगता ।

अजय कुमार ने कहा…

चलो गुनाह के पत्थर ही जेब में रख ले
सुना है राह में शीशे के घर भी आएँगे ।

अच्छा अंदाज ,अच्छी रचना ।

बेनामी ने कहा…

बहुत खूब! वाह क्या लिखा है? बधाई हो।
चलो गुनाह के पत्थर ही जेब में रख लें....
संजीदा, संवेदनशील, मौलिक और संदेश देने वाला लेखन। रचानात्मक सृजन, शुभकामनाएँ।
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तलाश जिन्दा लोगों की ! मर्जी आपकी, आग्रह हमारा!!

काले अंग्रेजों के विरुद्ध जारी संघर्ष को आगे बढाने के लिये, यह टिप्पणी प्रदर्शित होती रहे, आपका इतना सहयोग मिल सके तो भी कम नहीं होगा।
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सागर की तलाश में हम सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है। सागर में मिलन की दुरूह राह में आप सहित प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति का सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी प्रदर्शित होगी तो विचार की यात्रा में आप भी सारथी बन जायेंगे।

ऐसे जिन्दा लोगों की तलाश हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो हो। गौरे अंग्रेजों के खिलाफ भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह खाँ, चन्द्र शेखर आजाद जैसे असंख्य आजादी के दीवानों की भांति अलख जगाने वाले समर्पित और जिन्दादिल लोगों की आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने हेतु तलाश है।

इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम हो चुका है। सरकार द्वारा देश का विकास एवं उत्थान करने व जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, हमसे हजारों तरीकों से टेक्स वूसला जाता है, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ अफसरशाही ने इस देश को खोखला और लोकतन्त्र को पंगु बना दिया गया है।

अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, हकीकत में जनता के स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं।

आज देश में भूख, चोरी, डकैती, मिलावट, जासूसी, नक्सलवाद, कालाबाजारी, मंहगाई आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका सबसे बडा कारण है, भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरशाही द्वारा सत्ता का मनमाना दुरुपयोग करके भी कानून के शिकंजे बच निकलना।

शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)-के 17 राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से दूसरा सवाल-

सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! अब हम स्वयं से पूछें कि-हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवकों) को यों हीं कब तक सहते रहेंगे?

जो भी व्यक्ति इस जनान्दोलन से जुडना चाहें, उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्ति हेतु लिखें :-

(सीधे नहीं जुड़ सकने वाले मित्रजन भ्रष्टाचार एवं अत्याचार से बचाव तथा निवारण हेतु उपयोगी कानूनी जानकारी/सुझाव भेज कर सहयोग कर सकते हैं)

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा
राष्ट्रीय अध्यक्ष
भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666
E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

ek achchhi rachna ek liye kaushik jee ko badhai.......:)

रश्मि प्रभा... ने कहा…

जला के कोई ना रक्खे चिराग गलियों में
लुटेरे लूटने शायद इधर भी आयेंगे ।
waah

SURINDER RATTI ने कहा…

WAAH WAAH, BAHUT SUNDER
चलो गुनाह के पत्थर ही जेब में रख ले
सुना है राह में शीशे के घर भी आएँगे ।
MADHAV JI KO BADHAAYI

Surinder Ratti
Mumbai

शारदा अरोरा ने कहा…

bahut hi sundar
haath me titli ke par bhi aayenge ...aise lagaa jaise apni hasraton ke nuche hue pankh haathon me aa gaye hon ...

Dr.R.Ramkumar ने कहा…

जो शख्स देर तक उलझा रहेगा काँटों में
उसी के हाथ में तितली के पर भी आयेंगे ।
बस अपनी रूह के जख्मों को तुम हरा रखना
सफ़र में सैकड़ों सूखे शजर भी आयेंगे ।

ज्योति जी ,
आप बेहतर रचनाजगत में भी चलने का अवसर दे रही हैं
धन्यवाद..
ये अबोले सोचो को शब्द देते हैं

Neelam ने कहा…

Bahut hi sachha aur achha.