शनिवार, 17 अक्टूबर 2009

यथार्थ

ज़िन्दगी की हार पर इस कदर मायूस हो

मौत की ही जीत पर तू खुशियाँ मना ले

ईंटे-पत्थरो के महल में सूकून नही होता

एक -दूसरे के दिल में ही तू जगह बना ले

बुझ गए है सारे दिए साथ के तेरे

पहचान अगर बनानी है तो ख़ुद को जला ले

बुझने से बचा ना पायेगा दिवाली के दिए को

हकीकत के ही अंधेरे से तू घर को सजा ले

दिली चाहत है मिटाने की ,जो मज़हब की हदों को

रमजान मना लूँ मैं ,दशहरा तू मना ले

दिवाली है नही पूजने को लक्ष्मी की मूर्ति

गृह-लक्ष्मी को तू एक दिन तो लक्ष्मी बना ले

दो वक्त दीपक जलाया और लक्ष्मी मिल गई

माँ -बाप के अरमान ऐसे ,काश पूरे हो जाते सही

ज़िन्दगी भर पूजा है तन -मन -धन से जिसने तुझे

अब देर कर उठ ,पूजा की भभूति छोड़कर

जा माँ -बाप के चरणों की थोड़ी धूल लगा ले


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रचनाकार -----विवेक सिंह

शुभ -दीपावली

11 टिप्‍पणियां:

ज्योति सिंह ने कहा…

bahut hi shaandar .tyoharo ke saath rishton ko bhi khoobsurat bana kar rakkhe to kitna achchha ho .

राज भाटिय़ा ने कहा…

बुझ गए है सारे दिए साथ के तेरे

पहचान अगर बनानी है तो ख़ुद को जला ले ।
बहुत सुंदर कविता. धन्यवाद
आप को शुभ दिपावली

Girish Kumar Billore ने कहा…

Nice
Happy Diwali

शरद कोकास ने कहा…

एक सन्देश तो है इस कविता में ।

निर्मला कपिला ने कहा…

ज़िन्दगी की हार पर इस कदर मायूस न हो

मौत की ही जीत पर तू खुशियाँ मना ले ।

ईंटे-पत्थरो के महल में सूकून नही होता

एक -दूसरे के दिल में ही तू जगह बना ले ।
लाजवाब प्रेरक अभिव्यक्ति के लिये धन्यवाद्

चाहत ने कहा…

बहुत बड़िया है

चाहत ने कहा…

ज्योति जी धन्यवाद

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत सुंदर.

रामराम.

Urmi ने कहा…

बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण रचना !

ज्योति सिंह ने कहा…

shukriyaan aap sabhi ka

anil sharma ने कहा…

बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
शुभकामनायें.