ज़िन्दगी की हार पर इस कदर मायूस न हो
मौत की ही जीत पर तू खुशियाँ मना ले ।
ईंटे-पत्थरो के महल में सूकून नही होता
एक -दूसरे के दिल में ही तू जगह बना ले ।
बुझ गए है सारे दिए साथ के तेरे
पहचान अगर बनानी है तो ख़ुद को जला ले ।
बुझने से बचा ना पायेगा दिवाली के दिए को
हकीकत के ही अंधेरे से तू घर को सजा ले ।
दिली चाहत है मिटाने की ,जो मज़हब की हदों को
रमजान मना लूँ मैं ,दशहरा तू मना ले ।
दिवाली है नही पूजने को लक्ष्मी की मूर्ति
गृह-लक्ष्मी को तू एक दिन तो लक्ष्मी बना ले ।
दो वक्त दीपक जलाया और लक्ष्मी मिल गई
माँ -बाप के अरमान ऐसे ,काश पूरे हो जाते सही ।
ज़िन्दगी भर पूजा है तन -मन -धन से जिसने तुझे
अब देर न कर उठ ,पूजा की भभूति छोड़कर
जा माँ -बाप के चरणों की थोड़ी धूल लगा ले ।
................................................................
रचनाकार -----विवेक सिंह
शुभ -दीपावली
bahut hi shaandar .tyoharo ke saath rishton ko bhi khoobsurat bana kar rakkhe to kitna achchha ho .
जवाब देंहटाएंबुझ गए है सारे दिए साथ के तेरे
जवाब देंहटाएंपहचान अगर बनानी है तो ख़ुद को जला ले ।
बहुत सुंदर कविता. धन्यवाद
आप को शुभ दिपावली
Nice
जवाब देंहटाएंHappy Diwali
एक सन्देश तो है इस कविता में ।
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी की हार पर इस कदर मायूस न हो
जवाब देंहटाएंमौत की ही जीत पर तू खुशियाँ मना ले ।
ईंटे-पत्थरो के महल में सूकून नही होता
एक -दूसरे के दिल में ही तू जगह बना ले ।
लाजवाब प्रेरक अभिव्यक्ति के लिये धन्यवाद्
बहुत बड़िया है
जवाब देंहटाएंज्योति जी धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण रचना !
जवाब देंहटाएंshukriyaan aap sabhi ka
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें.