ज़िन्दगी की हार पर इस कदर मायूस न हो
मौत की ही जीत पर तू खुशियाँ मना ले ।
ईंटे-पत्थरो के महल में सूकून नही होता
एक -दूसरे के दिल में ही तू जगह बना ले ।
बुझ गए है सारे दिए साथ के तेरे
पहचान अगर बनानी है तो ख़ुद को जला ले ।
बुझने से बचा ना पायेगा दिवाली के दिए को
हकीकत के ही अंधेरे से तू घर को सजा ले ।
दिली चाहत है मिटाने की ,जो मज़हब की हदों को
रमजान मना लूँ मैं ,दशहरा तू मना ले ।
दिवाली है नही पूजने को लक्ष्मी की मूर्ति
गृह-लक्ष्मी को तू एक दिन तो लक्ष्मी बना ले ।
दो वक्त दीपक जलाया और लक्ष्मी मिल गई
माँ -बाप के अरमान ऐसे ,काश पूरे हो जाते सही ।
ज़िन्दगी भर पूजा है तन -मन -धन से जिसने तुझे
अब देर न कर उठ ,पूजा की भभूति छोड़कर
जा माँ -बाप के चरणों की थोड़ी धूल लगा ले ।
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रचनाकार -----विवेक सिंह
शुभ -दीपावली
11 टिप्पणियां:
bahut hi shaandar .tyoharo ke saath rishton ko bhi khoobsurat bana kar rakkhe to kitna achchha ho .
बुझ गए है सारे दिए साथ के तेरे
पहचान अगर बनानी है तो ख़ुद को जला ले ।
बहुत सुंदर कविता. धन्यवाद
आप को शुभ दिपावली
Nice
Happy Diwali
एक सन्देश तो है इस कविता में ।
ज़िन्दगी की हार पर इस कदर मायूस न हो
मौत की ही जीत पर तू खुशियाँ मना ले ।
ईंटे-पत्थरो के महल में सूकून नही होता
एक -दूसरे के दिल में ही तू जगह बना ले ।
लाजवाब प्रेरक अभिव्यक्ति के लिये धन्यवाद्
बहुत बड़िया है
ज्योति जी धन्यवाद
बहुत सुंदर.
रामराम.
बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण रचना !
shukriyaan aap sabhi ka
बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
शुभकामनायें.
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