जलाकर आशा के तुम दीप
गए बिखरा क्यो जीवन- फूल ,
सुभग था मेरा वह जीवन
भरी जिसने लाकर यह धूल ,
गए क्यो बिखरा जीवन -फूल
हुई क्या मुझसे कोई भूल ?
खड़ी कब से मन -मन्दिर द्वार
सजीले फूलों का ले हार ,
करोगे कब इसको स्वीकार
करोगे कब इसको स्वीकार ,
साधना की ये अन्तिम भूल ।
गए क्यो बिखरा जीवन -फूल
हुई क्या मुझसे कोई भूल ?
जहाँ मिल जाए तुमको प्यार
बसा लेना अपना संसार ,
पहन आंसुओं के हार
छुपा लूंगी मैं उर में शूल ।
भूला देना पथ लेना लीप
उमंगें बन जाए प्रतीक ।
बाँध पाई न मेरी प्रीत
आंक न पाये तुम भी भूल ।
गए बिखरा क्यो जीवन- फूल ,
सुभग था मेरा वह जीवन
भरी जिसने लाकर यह धूल ,
गए क्यो बिखरा जीवन -फूल
हुई क्या मुझसे कोई भूल ?
खड़ी कब से मन -मन्दिर द्वार
सजीले फूलों का ले हार ,
करोगे कब इसको स्वीकार
करोगे कब इसको स्वीकार ,
साधना की ये अन्तिम भूल ।
गए क्यो बिखरा जीवन -फूल
हुई क्या मुझसे कोई भूल ?
जहाँ मिल जाए तुमको प्यार
बसा लेना अपना संसार ,
पहन आंसुओं के हार
छुपा लूंगी मैं उर में शूल ।
भूला देना पथ लेना लीप
उमंगें बन जाए प्रतीक ।
बाँध पाई न मेरी प्रीत
आंक न पाये तुम भी भूल ।
गए क्यो बिखरा जीवन -फूल
हुई क्या मुझसे कोई भूल ?
______________________
रचनाकार ----विवेक सिंह
17 टिप्पणियां:
bahut sundar rachana ,bhavpoorn .
अत्यन्त सुंदर रचना! इस बेहतरीन और शानदार रचना के लिए बधाई!
हुई क्या मुझसे कोई भूल पढ़ते पढ़ते महादेवी वर्मा याद आगईं |आंसुओं के हार पहन कर ह्रदय में कांटे छुपलेने वाली बात ,सहनशीलता की पराकाष्ठा |जहाँ तुमको प्यार मिले वही अपना संसार बसा लेने वाली बात स्नेह युक्त प्रेम की ,त्याग की बात |सजीले फूलों के हार लिए यह इंतजार कि इसे कब स्वीकार करोगे एक दृढ इच्छा और निष्ठा की प्रतीक
achchhi rachna hai.
ज्योति जी,
आपको मेरी रचना अच्छी लगी, ये जान कर प्रसन्नता हुई।
उन प्रश्नों का उत्तर भारतीय समाज में अभी भी नहीं है। कहने को कही गयीं बातें हैं, असल में उत्तर मैं भी नहीं जानता।
जब कभी देखता हूँ कि किसी किशोरी का शोषण सिर्फ़ इस बात पर हो रहा है कि वो एक लड़की है और उसका भाई एक लड़का.. माँ-बाप सारे काम उसी से करवाते हैं... उस बेचारी को अपनी पढ़ाई करने का समय ही नहीं बचता... पर भाई मौज मस्ती भी कर आता है... तो दिल छलनी होता है ये सोच कर कि ये कैसा समाज है... जहाँ आज भी बेटियों को बराबरी का दर्ज़ा हासिल नहीं है।
अगर मेरी रचना पढ़ने-सुनने के बाद किसी एक इंसान का दिल भी उससे ये सब प्रश्न करे, तो मैं समझूँगा, मेरा प्रयास सफ़ल रहा...
-प्रत्यूष गर्ग (काव्याग्नि)
सुंदर रचना.....!
छुपा लूंगी मैं उर में शूल ।
भूला देना पथ लेना लीप
उमंगें बन जाए प्रतीक ।
बाँध पाई न मेरी प्रीत
आंक न पाये तुम भी भूल ।
गए क्यो बिखरा जीवन -फूल
हुई क्या मुझसे कोई भूल ?आगर इन्सान भूल आँक सके तो इतना दर्द ही दुनिया मे न हो बहुत सुन्दर रचना है बधाई
जहाँ मिल जाए तुमको प्यार
बसा लेना अपना संसार ,
पहन आंसुओं के हार
छुपा लूंगी मैं उर में शूल ।
बहुत अच्छी रचनां
shukriya sabhi ka .
brijmohanji ki baat se poori tarah sahamat hu, achhi rachna/
खोज के प्रस्तुत की गई है एक सुन्दर सी रचना......
shukriyan aap logo ka .
प्रिय ब्लॉगर,
सादर ब्लॉगस्ते,
आपका सन्देश अच्छा लगा.
क्यों आप भी अपन के ब्लॉग पर
पधारें. "एक पत्र मुक्केबाज विजेंद्र
के नाम" आपके अमूल्य सुझाव की
प्रतीक्षा में है.
sabhi logo ko tahe dil se shukriyaan .
very nice poem
bahut achaa loaga aap ko padh kar
deepawaliki subhkamnayen
bahut hi badhiyaa
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