शनिवार, 10 अप्रैल 2021

सागर के उर पर नाच नाच, करती हैं लहरे मधुर गान

सागर के उर पर नाच नाच, करती हैं लहरें मधुर गान।

जगती के मन को खींच खींच
निज छवि के रस से सींच सींच
जल कन्यांएं भोली अजान

सागर के उर पर नाच नाच, करती हैं लहरें मधुर गान।

प्रातः समीर से हो अधीर
छू कर पल पल उल्लसित तीर
कुसुमावली सी पुलकित महान

सागर के उर पर नाच नाच, करती हैं लहरें मधुर गान।

संध्या से पा कर रुचिर रंग
करती सी शत सुर चाप भंग
हिलती नव तरु दल के समान

सागर के उर पर नाच नाच, करती हैं लहरें मधुर गान।

करतल गत उस नभ की विभूति
पा कर शशि से सुषमानुभूति
तारावलि सी मृदु दीप्तिमान

सागर के उर पर नाच नाच, करती हैं लहरें मधुर गान।

तन पर शोभित नीला दुकूल
है छिपे हृदय में भाव फूल
आकर्षित करती हुई ध्यान

सागर के उर पर नाच नाच, करती हैं लहरें मधुर गान।

हैं कभी मुदित, हैं कभी खिन्न,
हैं कभी मिली, हैं कभी भिन्न,
हैं एक सूत्र से बंधे प्राण,

सागर के उर पर नाच नाच, करती हैं लहरें मधुर गान।

∼ ठाकुर गोपाल शरण सिंह

 

21 टिप्‍पणियां:

पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा ने कहा…

सागर के उर पर नाच नाच, करती हैं लहरें मधुर गान।
बहुत ही सुंदर रचना।
इसे शेयर करने हेतु साधुवाद। इसे पढ पाने का यह अवसर अत्यंत सुखद रहा।

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

सुंदर छायाचितत्रों से सजी अनुपम कृति ।

Bharti Das ने कहा…

प्रातः समीर से हो अधीर
छू कर पल पल उल्लसित तीर
कुसुमावली सी पुलकित महान

सागर के उर पर नाच नाच, करती हैं लहरें मधुर गान।
बेहद सुंदर कृति

जितेन्द्र माथुर ने कहा…

इस अति सुन्दर और मन मोह लेने वाले गीत को साझा करने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार।

Onkar ने कहा…

बेहद सुंदर

Anita ने कहा…

तन पर शोभित नीला दुकूल
है छिपे हृदय में भाव फूल
आकर्षित करती हुई ध्यान

सागर के उर पर नाच नाच, करती हैं लहरें मधुर गान।
वाह ! कितनी मधुर कल्पना !

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

सागर के उर पर नाच नाच, करती हैं लहरें मधुर गान।

छायावादी स्वर की बहुत मधुर रचना...🌹🙏🌹

SANDEEP KUMAR SHARMA ने कहा…

हैं कभी मुदित, हैं कभी खिन्न,
हैं कभी मिली, हैं कभी भिन्न,
हैं एक सूत्र से बंधे प्राण,

सागर के उर पर नाच नाच, करती हैं लहरें मधुर गान।----सुंदर कृति

अनीता सैनी ने कहा…

बहुत ही सुंदर सृजन।
दिल से आभार आदरणीय ज्योति दी रचना पढ़वाने हेतु।
सादर

Kamini Sinha ने कहा…

हैं कभी मुदित, हैं कभी खिन्न,
हैं कभी मिली, हैं कभी भिन्न,
हैं एक सूत्र से बंधे प्राण,

सागर के उर पर नाच नाच, करती हैं लहरें मधुर गान।
बहुत सुंदर भावपूर्ण सृजन,सादर नमन आपको

मन की वीणा ने कहा…

अहा! सुंदर छायावाद साकार करती कोमल कविता पंतजी जैसा मधुर राग।
सुंदर सरस ।
एक और कविता ताजी हो गई इसे पढ़कर बच्चन जी की "लहरों का निमंत्रण"
मन को प्रसन्न करता मधुरिम सृजन।

Amit Gaur ने कहा…

आप की पोस्ट बहुत अच्छी है आप अपनी रचना यहाँ भी प्राकाशित कर सकते हैं, व महान रचनाकरो की प्रसिद्ध रचना पढ सकते हैं।

Manisha Goswami ने कहा…

वाह!बहुत ही खूबसूरत और मनमोहक रचना! 🙏🙏🤗

Manisha Goswami ने कहा…

मैम,आप मेरे ब्लॉग पर क्यों नहीं आती अब? 😞😞😟

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

Bahut hi Sundar Rachna

Jyoti Dehliwal ने कहा…

कभी मुदित, हैं कभी खिन्न,
हैं कभी मिली, हैं कभी भिन्न,
हैं एक सूत्र से बंधे प्राण,

सागर के उर पर नाच नाच, करती हैं लहरें मधुर गान।
बहुत सुंदर रचना।

Umesh ने कहा…

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हरीश कुमार ने कहा…

बहुत सुंदर लेख..कभी मेरे ब्लॉग पे भी पधारे महोदय

INDIAN the friend of nation ने कहा…

good poem

विश्वमोहन ने कहा…

मन प्रसन्न हो गया ऐसी मनोरम रचना का रसास्वादन कर। बहुत सुंदर।