सोमवार, 24 मई 2010

चांद और कवि



रात यो कहने लगा मुझसे गगन का चाँद ,


आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है !


उलझने अपनी बनाकर आप ही फंसता ,


और फिर बेचैन हो जगता, सोता है


जानता है तू कि मैं कितना पुराना हूँ ?


मैं चुका हूँ देख मनु को जनमते-मरते ,


और लाखों बार तुझ-से पागलों को भी


चांदनी में बैठ स्वपनों को सही करते


आदमी का स्वप्न?है वह बुलबुला जल का ,


आज उठता और कल फिर फूट जता है,


किन्तु, फिर भी धन्य, ठहरा आदमी ही तो?


बुलबुलों से खेलता, कविता बनता है,


में बोला किन्तु मेरी रागिनी बोली ,


देख फिर से चाँद !मुझकों जनता है तू ?


स्वपन मेरे बुलबुले है? है यही पानी ?


आग को भी क्या नही पहचानता है तू ?


में वह जो स्वप्न को केवल सही करते ,


आग में उसको गला लोहा बनाती हूँ ,


और उस पर नीवं रखती हूँ नए घर की ,


इस तरह , दीवार फौलादी उठाती हूँ


मनो नही, मनु-पुत्र है यह सामने , जिसकी


कल्पना के जीभ में भी धार होती है ,


बाण ही होते विचारों के नहीं केवल ,


स्वप्न के भी हाँथ में तलवार होती है


स्वर के सम्राट को जाकर खबर कर दे ,


"रोज ही आकाश चढ़ते जा रहे है वे ,


रोकिये , जैसे बने , इन स्वप्न वालों को,


स्वर्ग की ओर बढ़ते रहे है वे"



____________



रचनाकार - रामधारी सिंह दिनकर

12 टिप्‍पणियां:

Urmi ने कहा…

कल्पना के जीभ में भी धार होती है ,
बाण ही होते विचारों के नहीं केवल ,
स्वप्न के भी हाँथ में तलवार होती है ।
वाह बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! इस उम्दा रचना के लिए बहुत बहुत बधाई!

Mahfooz Ali ने कहा…

बहुत सुंदर रचना...

--
www.lekhnee.blogspot.com

दिलीप ने कहा…

sajha karne ke liye dhanywaad

पंकज मिश्रा ने कहा…

आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है। वाकई। दिनकर जी ने सही लिखा है। कभी कभी तो मैं सोचता हूं कि आदमी भी क्या वाकई कोई जीव होता है। सोचिए और बताइए।
http://udbhavna.blogspot.com/

Randhir Singh Suman ने कहा…

nice

राज भाटिय़ा ने कहा…

अति सुंदर

छत्तीसगढ़ पोस्ट ने कहा…

इस बेहतरीन कविता कप ब्लागरों तक पहुँचाने के लिए शुक्रिया..शुभकामनाएं..

अरुणेश मिश्र ने कहा…

चयन प्रशंसनीय ।

HBMedia ने कहा…

मनो नही, मनु-पुत्र है यह सामने , जिसकी

कल्पना के जीभ में भी धार होती है ,

बाण ही होते विचारों के नहीं केवल ,

स्वप्न के भी हाँथ में तलवार होती है ।............aaj dekhiye phir aapke blog par ye panktiy mil hi gayi!bahut- bahut dhanywad rashtra kavi dinkar ki ye kavita utkrisht rachnao mein se ek hai. bahut-bahut dhanywad ise prakashit karne ke liye

Akhilesh pal blog ने कहा…

keya khoob rachana hai

संजय भास्‍कर ने कहा…

इस बेहतरीन कविता के लिए शुक्रिया..शुभकामनाएं.

शरद कोकास ने कहा…

मेरे बहुत प्रिय बिम्ब हैं यह ।