गुरुवार, 6 मई 2010


लहू जिनका बहाया जा रहा है
उन्हें कातिल बताया जा रहा है

जिन्हें मरने पे भी जलना नही था
उन्हें जिन्दा जलाया जा रहा है

वहां पर जिस्म बच्चे का नही है
जहां से सर उठाया जा रहा है

जिन्हें अच्छी तरह से जानता हूँ
मुझे उनसे मिलाया जा रहा है

अभी पूरी तरह जागे थे हम
थपक कर फिर सुलाया जा रहा है
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रचनाकार -----अंदाज़ देहलवी

18 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

उम्दा ग़ज़ल

बेहतरीन ग़ज़ल...........

M VERMA ने कहा…

जिन्हें मरने पे भी जलना नही था
उन्हें जिन्दा जलाया जा रहा है ।
बेहतरीन गज़ल
विसंगतियाँ दर्शाती

लोकेन्द्र सिंह ने कहा…

बेहतरीन.......बेहतरीन.......बेहतरीन

Smart Indian ने कहा…

बहुत सच्ची बात! रचनाकार और आप, दोनों को बधाई!

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत उम्दा गजल धन्यवाद

दिलीप ने कहा…

waah bahut khoob ghazal...

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

यह ग़ज़ल दिल को छू गई.... मैं लखनऊ वापस आ गया हूँ.... आप कैसी हैं?

अरुणेश मिश्र ने कहा…

प्रशंसनीय ।

शरद कोकास ने कहा…

जिन्हें अच्छी तरह से जानता हूँ
मुझे उनसे मिलाया जा रहा है ।

बहुत खूबसूरत शेर है यह ।

dipayan ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
dipayan ने कहा…

लाज़वाब शेर और उम्दा गज़ल । बहुत खूब

Urmi ने कहा…

बहुत ही ख़ूबसूरत और शानदार ग़ज़ल लिखा है आपने! एक से बढ़कर एक शेर हैं! उम्दा प्रस्तुती!

hem pandey ने कहा…

'अभी पूरी तरह जागे न थे हम
थपक कर फिर सुलाया जा रहा है ।'


- बहुत खूब ! इस सुलाये जाने के षडयंत्र से सावधान रहने की आवश्यकता है.

आदेश कुमार पंकज ने कहा…

बहुत प्रभावशाली
http:// adeshpankaj.blogspot.com/
http:// nanhendeep.blogspot.com/

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

कोई भी एक मिसरा चुन पाना कठिन है!

विरोधाभास अच्छा दर्शाया है आपने!

बधाई!

R.Venukumar ने कहा…

जिन्हें अच्छी तरह से जानता हूँ
मुझे उनसे मिलाया जा रहा है ।

अभी पूरी तरह जागे न थे हम
थपक कर फिर सुलाया जा रहा है ।


ज्योति जी! बहुत अच्छी गजल से मिलवाया है आपने..सच , पहले इससे नहीं मिला था।

Akhilesh pal blog ने कहा…

behtareen

संजय भास्‍कर ने कहा…

यह ग़ज़ल दिल को छू गई.