लहू जिनका बहाया जा रहा है
उन्हें कातिल बताया जा रहा है ।
जिन्हें मरने पे भी जलना नही था
उन्हें जिन्दा जलाया जा रहा है ।
वहां पर जिस्म बच्चे का नही है
जहां से सर उठाया जा रहा है ।
जिन्हें अच्छी तरह से जानता हूँ
मुझे उनसे मिलाया जा रहा है ।
अभी पूरी तरह जागे न थे हम
थपक कर फिर सुलाया जा रहा है ।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
रचनाकार -----अंदाज़ देहलवी
18 टिप्पणियां:
उम्दा ग़ज़ल
बेहतरीन ग़ज़ल...........
जिन्हें मरने पे भी जलना नही था
उन्हें जिन्दा जलाया जा रहा है ।
बेहतरीन गज़ल
विसंगतियाँ दर्शाती
बेहतरीन.......बेहतरीन.......बेहतरीन
बहुत सच्ची बात! रचनाकार और आप, दोनों को बधाई!
बहुत उम्दा गजल धन्यवाद
waah bahut khoob ghazal...
यह ग़ज़ल दिल को छू गई.... मैं लखनऊ वापस आ गया हूँ.... आप कैसी हैं?
प्रशंसनीय ।
जिन्हें अच्छी तरह से जानता हूँ
मुझे उनसे मिलाया जा रहा है ।
बहुत खूबसूरत शेर है यह ।
लाज़वाब शेर और उम्दा गज़ल । बहुत खूब
बहुत ही ख़ूबसूरत और शानदार ग़ज़ल लिखा है आपने! एक से बढ़कर एक शेर हैं! उम्दा प्रस्तुती!
'अभी पूरी तरह जागे न थे हम
थपक कर फिर सुलाया जा रहा है ।'
- बहुत खूब ! इस सुलाये जाने के षडयंत्र से सावधान रहने की आवश्यकता है.
बहुत प्रभावशाली
http:// adeshpankaj.blogspot.com/
http:// nanhendeep.blogspot.com/
कोई भी एक मिसरा चुन पाना कठिन है!
विरोधाभास अच्छा दर्शाया है आपने!
बधाई!
जिन्हें अच्छी तरह से जानता हूँ
मुझे उनसे मिलाया जा रहा है ।
अभी पूरी तरह जागे न थे हम
थपक कर फिर सुलाया जा रहा है ।
ज्योति जी! बहुत अच्छी गजल से मिलवाया है आपने..सच , पहले इससे नहीं मिला था।
behtareen
यह ग़ज़ल दिल को छू गई.
एक टिप्पणी भेजें