मित्रो, इस ब्लौग में मैं मेरे पसंदीदा रचनाकारों की रचनायें प्रस्तुत करूंगी, जो निश्चित रूप से आपको भी पसन्द आयेंगी.
शुक्रवार, 28 जनवरी 2011
'श्रद्धांजलि '
तुम आज नही हो वर्तमान ,
आयोजन है
श्रद्धांजलियों का ,
भाषण ,कुर्सिया ,मंच ,
मालायें शब्द ,पुस्तकें ,
लाउडस्पीकर आकाशवाणी ,
क्या तुम्हे पसंद नही ?
यह ढोल ,
यह खोल ,
तो बताओ
कैसे श्रद्धांजलि लोगे तुम ?
अपने नाम पर
चंदा करवाकर
नगर के चोंराहे पर
प्रतिमा -रूप में टंग जाना
पसंद क्यों नही करते तुम ?
मेरी मानो तो बन्धु ,
इसी में परम सुख है ,
कल्याण है ,
नेताओ के मुख से
हर साल (आज के दिन )
तुम्हे याद किया जाना
नगर के चौराहे पर
प्रतिमा बन खड़े हो जाना
थोड़े से रूपए खर्च होते है ।
वरना ,
तुम्हारे रास्ते पर अमल
तुम्हारी योजनाओ पर कार्य ,
तुम्हारे मार्गो पर यात्रा
बड़ा ही व्ययसाध्य है ,
और भारत ,
एक गरीब देश है ।
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रचनाकार -------कमला चांदवानी
यही तरीका समझा जाता है श्रेष्ठों को याद करने का, अपने देश में। गहरा हो कुछ तो, उन्हे भी शान्ति मिले।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ,
जवाब देंहटाएंसच में उन महापुरुषों को साल में २-३ बार ही तो याद किया जाता है
तुम्हारे रास्ते पर अमल
तुम्हारी योजनाओ पर कार्य ,
तुम्हारे मार्गो पर यात्रा
बड़ा ही व्ययसाध्य है ,
और भारत ,
एक गरीब देश है
बहुत बढ़िया !
bharat gareeb desh nahi hai par par yaha ke logo ki soch gareeb hai
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंअरे वाह जी आज सब यही तो हो रहा हे, बहुत खुब, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसही बात है गरीब देश में मूर्ती तो लग सकती है...गरीब जनता का उद्भव नहीं हो सकता....
जवाब देंहटाएंबढ़िया व्यंग्य भी है...
आजकल के नेताओं के लिए बहुत बढ़िया सुझाव दिया गया है इस कविता में।
जवाब देंहटाएंअच्छी व्यंग्य रचना।
इतना भी याद कर लें...बहुत है ज्योति जी :)
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना प्रस्तुत करने के लिए बधाई.
बहुत बढ़िया ! सुन्दर व्यंग्य !
जवाब देंहटाएंअपनी स्वार्थसिद्धि के आगे उनकी पसंद का ध्यान कौन रखता है - सुंदर रचना के माध्यम से ध्यान दिलाने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंbahut vangyatmak kavita dwara is desh me shradhanjli dene ke tareeke ka udghatan kiya hai.kamala ji ki rachna bahut achchhi lagi .aabhar .
जवाब देंहटाएंek khubsurat vyangyatmak rachna pesh karne ke liye dhanyawad...jyoti jee......
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