रविवार, 6 फ़रवरी 2011

मुक्तक


इक पल की हार पर ,दुख कर ,
मुस्कुरा के इसे भी ,स्वीकार कर ,
चलना सिखला देती है ,इंसान को ,
राह में लगी हुई ,हर इक ठोकर
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उगते सूरज को , कौन रोक पाया
किरण को अँधेरा कब ढांप पाया ,
जुलम - -सितम से ,कब इंसान हारा ,
आशा को भला कौन मिटा पाया
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सतत प्रयत्न ही ,दुनिया में सफल होते है ,
वे मूर्ख होते है ,जो पछताते रहते है ,
भुला कर अतीत ,भविष्य में झांको ,
पाते है मंजिल वही ,जो चलते रहते है
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दुख को ही ना अपनी नियति मान
असफलताओ को ना ,अपना भाग्य जान ,
उठ संघर्ष कर ,कर्म कर
हर मुसीबत से लड़ना ,अपना फर्ज जान
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अरुणा शर्मा


7 टिप्‍पणियां:

  1. दुख को ही ना अपनी नियति मान
    असफलताओ को ना ,अपना भाग्य जान ,
    उठ संघर्ष कर ,कर्म कर
    हर मुसीबत से लड़ना ,अपना फर्ज जान ।
    वाज जी बहुत खुब हमे हर हालात मे हर मुस्किल से लड कर आगे बढना हे , बहुत सुंदर रचना, धन्यवाद

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  2. जीवन को आशाओं से भरने वाला...मुक्तक....

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  3. एक बेहतरीन रचना ।
    काबिले तारीफ़ शव्द संयोजन ।
    बेहतरीन अनूठी कल्पना भावाव्यक्ति ।
    सुन्दर भावाव्यक्ति ।

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  4. सतत प्रयत्न ही ,दुनिया में सफल होते है
    क्या बात है.
    सुन्दर कविता.

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