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सोमवार, 27 सितंबर 2010
नीरज जी कुछ दोहे
आत्मा के सौन्दर्य का ,शब्द रूप है काव्य
मानव होना भाग्य है ,कवि होना सौभाग्य ।
जब से पनपा देश में ,अयोग्यता का वंश
कौए तो मोती चुगे ,आंसू पीये हंस ।
सिसक - सिसक रोया बहुत सारा घर - परिवार
जिस दिन उठवायी गई आँगन में दीवार ।
हो जाये जब शान्ति के सब प्रयत्न बेकार
तब फिर केवल युद्ध ही अंतिम उपचार ।
घर -घर में आंधी खडी दर -दर पर तूफ़ान
कैसे इस माहौल में ,जिए कहो इंसान ।
कुर्सी की महिमा अमित ,हमसे कही न जाये
कभी बिठाये तख्त पर ,कभी जेल पहुंचाए ।
पीछे तो निंदा करे ,सम्मुख परसे प्यार
खतरनाक है शत्रु से ज्यादा ऐसे यार ।
विज्ञापन ने है रचा ऐसा मायाजाल
हम साड़ी के दाम में , करते क्रय रूमाल ।
टी .वी ने हम पर किया यूं छुप -छुप कर वार
संस्कृति सब घायल हुई बिना तीर -तलवार ।
बनना है तुमको अगर 'नीरज ' यहाँ अमीर
सोचो मत किस चीज को कहते यहाँ जमीर ।
.....................................................................
गोपालदास नीरज
Neeraj ji ki rachanen to sada se prabhawit karati aaeen hain.
जवाब देंहटाएंआनन्द आ गया पढ़कर।
जवाब देंहटाएंसभी दोहे एक से बढ कर एक हैं मगर ये दिल को छू गये
जवाब देंहटाएंघर -घर में आंधी खडी दर -दर पर तूफ़ान
कैसे इस माहौल में ,जिए कहो इंसान ।
कुर्सी की महिमा अमित ,हमसे कही न जाये
कभी बिठाये तख्त पर ,कभी जेल पहुंचाए ।
नीरज जी को बधाई।
अच्छा संकलन
जवाब देंहटाएंयहाँ भी पधारें:-
ईदगाह कहानी समीक्षा
इसमे टी वी भी है
जवाब देंहटाएंसिसक - सिसक रोया बहुत सारा घर - परिवार
जवाब देंहटाएंजिस दिन उठवायी गई आँगन में दीवार ।
सभी दोहे बहुत सुंदर, धन्यवाद
घर -घर में आंधी खडी दर -दर पर तूफ़ान
जवाब देंहटाएंकैसे इस माहौल में ,जिए कहो इंसान ।
नीरज जी की लेखनी लाजवाब है...
पढ़वाने के लिए शुक्रिया ज्योति जी.
घर -घर में आंधी खडी दर -दर पर तूफ़ान
जवाब देंहटाएंकैसे इस माहौल में ,जिए कहो इंसान ।
बिल्कुल सही! बहुत अच्छा लगा पढ़कर!
सिसक - सिसक रोया बहुत सारा घर - परिवार
जवाब देंहटाएंजिस दिन उठवायी गई आँगन में दीवार ।
neeraj gee ke khoobsurat rachana ko padhne ka awsar dene ke liye bahut bahut dhanybad
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.........
जवाब देंहटाएंबधाई.
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.........
जवाब देंहटाएंबधाई.
bahut hi sarthakta liye hui hai aapki post.bahut hi sndar----
जवाब देंहटाएंजब से पनपा देश में ,अयोग्यता का वंश
कौए तो मोती चुगे ,आंसू पीये हंस ।
सिसक - सिसक रोया बहुत सारा घर - परिवार
जिस दिन उठवायी गई आँगन में दीवार ।
हो जाये जब शान्ति के सब प्रयत्न बेकार
तब फिर केवल युद्ध ही अंतिम उपचार ।
घर -घर में आंधी खडी दर -दर पर तूफ़ान
कैसे इस माहौल में ,जिए कहो इंसान ।
behatreen
poonam
बड़े दिनों बाद नीरज जी की पंक्ितयां पढ़वाने के लिये आभार
जवाब देंहटाएंनीरज जी की रचना पर क्या लिखेँ ।
जवाब देंहटाएंप्रेरक ।
बेशकीमती हो गया ब्लाग
जवाब देंहटाएंवाह क्या संयोजन है
आभार
सादर गिरीश
ताज़ा पोस्ट विरहणी का प्रेम गीत
नीरज जी जैसे
जवाब देंहटाएंमहान लेखक की रचना पढ़कर बहुत मजा आया
धनतेरस की हार्दिक शुभकामनायें
Main Bahut dino se Neeraj ji ki rachnao ki talas me tha. Bahut hi Achha laga .Happy Diwali.Awaiting for your next post.
जवाब देंहटाएंwish u a happy diwali and happy new year
जवाब देंहटाएंआपका ब्लॉग देखा बहुत अच्छा लगा बहुत कुछ है जो में आपसे सिख सकता हु और भुत कुछ रोचक भी है में ब्लॉग का नया सदस्य हु असा करता हु अप्प भी मेरे ब्लॉग पे पदारने की क्रप्या करेंगे कुछ मुझे भी बताएँगे जो में भी अपने ब्लॉग में परिवर्तन कर सकूँगा में अपना लिंक निचे दे रहा हु आप देख सकते है
जवाब देंहटाएंhttp://dineshpareek19.blogspot.com/
http://vangaydinesh.blogspot.com/
धन्यवाद्
दिनेश पीक