सोमवार, 27 जुलाई 2009

मानवता का सार

मैं के साथ सभी जीते है ,

परहित हमारा प्रथम चरण हो ।

स्वर्ग से बढ़कर होगा

उस सुख का अहसास ,

जिस सभ्यता -संस्कृति को लेकर

चला आ रहा इतिहास ।

लिए प्रतिशोध की भावनायें

मन में ,

न करो हनन , मानवता का आज ।

हृदय उदार हो ,मन विशाल हो ,

ऊँचे रक्खो विचार ।

जीवन सादा-सच्चा हो ,

दृढ़ता का परिचायक बनकर

साधो जीने का आधार ।

'दोष ' हम सभी में है

परन्तु

दोष मुक्त होने का

करते रहो प्रयास ।

फिर सफलता कदम चूमेगी ,

मंजिल होगी पास ।

पतझड़ में भी उमीदो की

रख मन में आस ।

करो भलाई औरो की

फ़र्ज़ का करके ध्यान ।

फल की इच्छा न कर आगे

कर्म तेरा प्रधान ।

दृढ़ शक्ति तू मन में ले ,

जगा नया विश्वाश ।

प्रस्फुटित होंगी फिर सारी किरणे

लेकर नया प्रकाश ।


। रचनाकार --ज्योति सिंह

9 टिप्‍पणियां:

  1. बिल्कुल सही बात कही आपने। मानवता का सार इससे इतर कुछ हो भी नहीं सकता। सचमुछ बहुत सार्थक पंक्तियां है।

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  2. sarvprtham aapko dhnywad ak svsth tippni ke liye .
    मैं के साथ सभी जीते है ,

    परहित हमारा प्रथम चरण हो ।
    in pnktiyo me hi bhut sar hai .
    ak sundar achna ke liye badhai.

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  3. Mai pahlee baar aayee hun,aapke blogpe..behad achha laga..!

    http://kshama-bikharesitare.blogspot.com/

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  4. दोष मुक्त होने का
    करते रहो प्रयास ।
    बहुत सुन्दर विचारो से लैस रचना

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  5. Bahut sundar.

    Happy Friendship day.....!! !!!!

    पाखी के ब्लॉग पर इस बार देखें महाकालेश्वर, उज्जैन में पाखी !!

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  6. jyotiji ,badhai aapki rachana achi lagi sach,hi sarthak hai .aap bhi hamare blog per aaye .....kamana mumbai.

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  7. इस रचनाने 'वैष्णव जन तो तेणे कहिये ...' ये गाँधी जी का परम प्रिय भजन याद दिला दिया ..और लता दीदी की आवाज़ कानों में गूँजती रही ..इस रचनाको मैंने गुनगुनाना चाहा..!

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  8. सचमुछ बहुत सार्थक पंक्तियां है।

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