गुरुवार, 7 अप्रैल 2011

राही को समझाए कौन


जो बात मेरे कान में ख्वाबो ने कही है
वो बात हमेशा ही गलत हो के रही है

जो चाहो लिखो नाम मेरे सब है मुनासिब
उनकी ही अदालत है यहाँ जिनकी बही है

टपका जो लहू पाँव से मेरे तो वो चीखे
कल जेल से भागा था जो मुजरिम वो वही है

वो चाहे मेरी जीभ मेरे हाथ पर रख दे
मैं फिर भी कहूँगा कि सही बात सही है

इक दोस्त से मिलने के लिए से खड़ा हूँ
कूचा भी वही ,घर भी वही ,दर भी वही है

उम्मीद की जिस छत के तले राही रुका मैं
वो छत ही क़यामत की तरह सिर पे ढही है
......................................................................
एक और रचना बालस्वरूप राही जी की आप सभी के लिए ,उम्मीद नही यकीन है मुझे पसंद आई है ,आपको भी जरूर आएगी .

23 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब ग़ज़ल.ये अशार बहुत ही ख़ास लगे.

    वो चाहे मेरी जीभ मेरे हाथ पर रख दे
    मैं फिर भी कहूँगा कि सही बात सही है

    उम्मीद की जिस छत के तले राही रुका मैं
    वो छत ही क़यामत की तरह सिर पे ढही है

    दिल को छूने वाली ग़ज़ल के लिए आभार.
    राही जी के बारे में कुछ लिखिए.

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  2. उम्मीद की जिस छत के तले राही रुका मैं
    वो छत ही क़यामत की तरह सिर पे ढही है ।

    bahut khoobsoorat !
    aap ne bilkul sahee samjha jyoti ji ,bahut achchhi ghazal hai .

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  3. उम्मीद की जिस छत के तले राही रुका मैं
    वो छत ही क़यामत की तरह सिर पे ढही है ।

    उम्मीदें ऐसे ही ढहती हैं।

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  4. 'वो चाहे मेरी जीभ मेरे हाथ पर रख दे
    मैं फिर भी कहूँगा कि सही बात सही है'
    bahut sundar prastuti.aap bhi chun chun ke moti prastut karti hain. aabhar aapka.

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  5. इक दोस्त से मिलने के लिए कब से खड़ा हूँ
    कूचा भी वही ,घर भी वही ,दर भी वही है ।
    उम्मीद की जिस छत के तले राही रुका मैं
    वो छत ही क़यामत की तरह सिर पे ढही है ।

    बहुत सुन्दर और भावपूर्ण ग़ज़ल....

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  6. जो चाहो लिखो नाम मेरे सब है मुनासिब
    उनकी ही अदालत है यहाँ जिनकी बही है ।

    बालस्वरूप राही जी की एक अच्छी ग़ज़ल प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद।

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  7. वो चाहे मेरी जीभ मेरे हाथ पर रख दे
    मैं फिर भी कहूँगा कि सही बात सही है ।

    बहुत बढ़िया, बहुत सुंदर।

    गहन भावनाओं को रेखांकित करती अच्छी ग़ज़ल।

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  8. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण ग़ज़ल| धन्यवाद|

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  9. बहुत सुन्दर प्रस्तुति
    बहुत बहुत धन्यवाद

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  10. vo chaahen meri jeebh mere haath pe ,rakhde ,
    main fir bhi kahungaa ki sahi baat sahi hai .
    Gazal kaa behtreen shair hai .
    chayan ke liye badhaai !
    veerubhai .

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  11. Really good gazal.
    रामनवमी की हार्दिक शुभकामनायें.

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  12. यह रचना तो मुझे भी अच्छी लगी.
    पाखी की दुनिया में भी आपका स्वागत है.

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  13. आदरणीया ज्योति सिंह जी
    सादर सस्नेहाभिवादन !

    इतनी सुंदर रचना के लिए आभार !

    * श्रीरामनवमी की शुभकामनाएं ! *
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  14. इक दोस्त से मिलने के लिए कब से खड़ा हूँ
    कूचा भी वही ,घर भी वही ,दर भी वही है ..

    Excellent presentation !

    Thanks Jyoti ji for sharing this with us.

    .

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  15. इक दोस्त से मिलने के लिए कब से खड़ा हूँ
    कूचा भी वही ,घर भी वही ,दर भी वही है ।

    उम्मीद की जिस छत के तले राही रुका मैं
    वो छत ही क़यामत की तरह सिर पे ढही है
    बहुत खूब ग़ज़ल!!
    बालस्वरूप राही जी की एक अच्छी ग़ज़ल प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  16. इक दोस्त से मिलने के लिए कब से खड़ा हूँ
    कूचा भी वही ,घर भी वही ,दर भी वही है ।

    उम्मीद की जिस छत के तले राही रुका मैं
    वो छत ही क़यामत की तरह सिर पे ढही है
    बहुत खूब ग़ज़ल!!
    बालस्वरूप राही जी की एक अच्छी ग़ज़ल प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  17. वो छत ही क़यामत की तरह सिर पे ढही है
    यही तो त्रासदी है :)

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  18. इक दोस्त से मिलने के लिए कब से खड़ा हूँ
    कूचा भी वही ,घर भी वही ,दर भी वही है ।

    उम्मीद की जिस छत के तले राही रुका मैं
    वो छत ही क़यामत की तरह सिर पे ढही है ।

    सुन्दर ग़ज़ल के लिए शुक्रिया

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  19. वो चाहे मेरी जीभ मेरे हाथ पर रख दे
    मैं फिर भी कहूँगा कि सही बात सही है ।
    लाजवाब शेर। गज़ल बहुत अच्छी लगी। धन्यवाद।

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  20. बहुत खूबसूरत गज़ल ।
    वो चाहे मेरी जीभ मेरे हाथ पर रख दे
    मैं फिर भी कहूँगा कि सही बात सही है ।
    ये शेर तो कमाल का है ।

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