सोमवार, 29 मार्च 2010

कुछ दोहे


हिंदी -उर्दू काव्य प्रेमियों के बीच समान रूप से लोकप्रिय और सम्मानित 'निदा फाजली ' समकालीन उर्दू साहित्य के उल्लेखनीय और महत्वपूर्ण हस्ताक्षर है ।

कभी किसी को मुकम्मल जहां नही मिलता

कही जमीं तो कही आसमान नही मिलता ....

जैसे कालजयी शेर कहने वाले निदा फाजली की गजले और नज्मे वर्तमान युग की सभी विसंगतियों को रेखांकित करती हुई ,अँधेरे रास्तों में उमीदों की नयी किरणे बिखेरती है । इनसे कौन परिचत नही ,बस कुछ मित्रो के आग्रह पर उनका संक्षिप्त वर्णन दे रही हूँ ,आप सभी मित्रो की अहसानमंद हूँ , जो मेरी पसंद को आपने सराहा ,शुक्रिया दिल से ।

निदा फाजली के कुछ दोहे आज डाल रही हूँ -------


मैं रोया परदेस में ,भीगा माँ का प्यार

दुख ने दुख से बात की ,बिन चिट्ठी बिन तार ।

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बच्चा बोला देखकर ,मस्जिद आलीशान

अल्लाह तेरे एक को इतना बड़ा मकान ।

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बहने चिड़िया धूप की , दूर गगन से आये

हर आँगन मेहमान - सी ,पकड़ो तो उड़ जाये ।

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सुना है अपने गाँव में रहा न अब वो नीम

जिसके आगे मांद थे सारे वैद्य -हकीम ।

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सीधा -सादा डाकिया ,जादू करे महान

एक ही थैले में भरे ,आंसू और मुस्कान ।

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सातो दिन भगवान के ,क्या मंगल क्या पीर

जिस दिन सोये देर तक ,भूखा रहे फकीर ।

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माटी से माटी मिले ,खो के सभी निशान

किस में कितना कौन है ,कैसे हो पहचान ।

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निदा फाजली

शुक्रवार, 26 मार्च 2010

हिन्दुस्तानी गजले


दौरे -जाम है साकी , रिंदी है मस्ती है


ये किस ढब का है मैखाना ,ये कैसी मैपरस्ती है




मुझे अब मयकदे में शीशा - -सागर से क्या लेना


कि मेरे दिल में चश्मे -शाहिदे -राना की मस्ती है




कभी वो भी ज़माना था कि हम दुनिया पे हँसते थे


कभी ये भी ज़माना है कि दुनिया हम पे हंसती है




मुहब्बत की कोई कीमत मुक़र्रर हो नही सकती


ये जिस कीमत पे मिल जाए उसी कीमत पे सस्ती है




मुहब्बत ही नही ख्वाहाँ जवानी के सहारे की


जवानी भी मुहब्बत के सहारे को तरसती है




समझ से अपनी बाहर है ,समझ में नही सकता


तिलिस्मे -राजे -हस्ती फिर तिलिस्मे -राजे -हस्ती है




कोई माने माने 'रवां ' सच है यही लेकिन


हमारी वज्हे-बरबादी हमारी खुद परस्ती है




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रचनाकार --------प्रेमबिहारी लाल सक्सेना 'रवाँ'

बुधवार, 24 मार्च 2010

अंजुम जी की रचना











एक लफ्ज में सीने का नूर ढाल के रख


कभी कभार तो कागज़ पे दिल निकाल के रख .




जो दोस्तों की मुहब्बत से जी नही भरता

तो आस्तीन में दो - चार सांप पाल के रख


तुझे तो कितनी बहारे सलाम भेजेंगी


अभी ये फूल -सा चेहरा जरा संभाल के रख




यहाँ से धूप के नेजे बुलंद होते है


तमाम छाँव के किस्सों पे ख़ाक डाल के रख




महक रहे कई आसमान मिट्टी में


कदम जमीने -मुहब्बत पे देखभाल के रख




दिलो - दिमाग ठिकाने पे आने वाले है


अब उसका ज़िक्र किसी और दिन पे टाल के रख




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रचनाकार ........'अंजुम ' बाराबंकवी

मंगलवार, 16 मार्च 2010














ेरा हिज्र मेरा नसीब है


तेरा गम ही मेरी हयात है


मुझे तेरी दूरी का गम हो क्यों


तू कही भी हो मेरे साथ है


मेरे वास्ते तेरे नाम पे


कोई हर्फ़ आये ,नही नही


मुझे खौफे दुनिया नही ,


मगर मेरे रु - -रु तेरी जात है


मेरे रु - -रु तेरी जात है


तेरा वस्ल मेरी दिलरुबा


नही मेरी किस्मत तो क्या हुआ ?


मेरी महजबी मेरी महजबी


मेरी महजबी यही कम है क्या ?


तेरी हसरतों का तो साथ है


तेरी हसरतों का तो साथ है


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निदा फाजली की ये रचना आप सभी ने सुनी होगी ,मगर मुझे पसंद है बेहद और ये गीत अक्सर सुनती हूँ इसलिए ब्लॉग पर डाल दी हूँ इस पसंद को




शनिवार, 13 मार्च 2010



आज निदा फ़ाज़ली की रचना डाल रही -------------




जो मिला खुद को ढूंढता ही मिला


हर जगह कोई दूसरा ही मिला




गम नही सोता आदमी की तरह


नीँद में भी ये जागता ही मिला




खुद से ही मिल के लौट आये हम


हमको हर सिम्त आइना ही मिला




जब से गोया हुई है ख़ामोशी


बोलना वाला बेसदा ही मिला




हर थकन का फरेब है मंजिल


चलने वालो को रास्ता ही मिला


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निदा फ़ाज़ली