मंगलवार, 12 जनवरी 2010

अंतर



दिन किसी का न सही


रात तो है मर्जी की अपनी ,


सुबह भाग दौड़ के साये से घिरी


रात्रि रही चैन की लिबास में लिपटी ,


प्रभात जिम्मेदारियों के बोझ तले


निशा का निमंत्रण मन को सुकून दे ।
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ज्योति सिंह

17 टिप्‍पणियां:

  1. सुबह भाग दौड़ के साये से घिरी
    रात्रि रही चैन की लिबास में लिपटी

    सुंदर पंक्तियां ,अच्छी लगी

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  2. ज्योति जी, आदाब
    प्रभावित करने वाली रचना है
    ऐसा ही लिखते रहिये
    शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

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  3. मकर संक्रांति की शुभकामनायें!
    बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने! बधाई!

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  4. शायद हम सभी की ज़िन्दगी को दर्शाती हुई रचना. बहुत खूबसूरत लेख.

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  5. ंंआपको अच्छा लगा... मेरा लिखना सार्थक हुआ। प्रशंसा के लिए कोटि कोटि धन्यवाद...

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  6. सही बात मगर आज की भाग दौड मे अब रात भी कहां अपनी रही है। । सुन्दर अभिव्यक्ति है आभार्

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  7. सच्ची बात

    निशा का निमंत्रण मन को सकून देता है.

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  8. बहुत सही.. अगर रात में नींद सही आ जाए तो समझिये बहुत पुण्य का काम किया है आपने दिन में.. वैसे निशा के आगमन का ये चित्रण खूब रहा

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  9. सुंदर तस्वीर के साथ .. बहुत उम्दा रचना...

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  10. शुक्रिया.

    "दिन किसी का न सही
    रात तो है मर्जी की अपनी ,"

    बहुत सुन्दर लिखा आपने.

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  11. इस सुन्दर रचना के लिए बधाई.

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  12. nisha ka nimantran...uff mujh jese insaan ke liye bahut jaroori he yah. par nahi..raat..kab nikal jaati he pataa hi nahi chaltaa.., kuchh kaamo me to kuchh padhhne-likhane me..kuchh yaado me kuchh...., kintu hnaa, apni marzi ki raat hoti he yah sach he...par chen nahi miltaa..kuchh paane, yaa jaagane..aour samay ko bhagate dekhane ka shouk..raat ki tanhaaiya..dekhane hi nahi deta, kher.., aapki rachna..dichasp he.

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  13. sach kahaa aapne
    subah ki bhaag-daur
    se thke insaan ko
    raat ki aagosh hi
    sukoon bakhshtee hai .

    achhee rachnaa .

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  14. आपको और आपके परिवार को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!

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