शनिवार, 21 सितंबर 2013

ऐसा लगता अब तक मुझमे - हिंदी ग़ज़ल

तख्ती -बस्ता  अब तक मुझमे 
एक  मदरसा  अब तक मुझमे  . 
 
भरी  भीड़  में  चलता  संग -संग 
तनहा  रास्ता  अब तक  मुझमे  . 

बहने  को  आतुर  रहता  है 
सूखा  दरिया  अब  तक  मुझमे  . 

बनते  -बनते  रह  जाता  है 
घर  का  नक्शा  अब तक मुझमे  . 

तड़प  रहा  है  कोई  परिंदा  
ऐसा  लगता  अब  तक  मुझमे   ।



रचनाकार   --अश्वघोष 

6 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर प्रस्तुति...किसी भी रचनाकार की रचना से परिचय कराना भी एक पुण्य का काम है..इसके लिए आप को बधाई...

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  2. बहुत ही खूबसूरत गजल । रचनाकार को बधाई ।

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  4. बहोत प्यारी रचना ......निर्दोष...पाक़

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  6. बेहद खूबसूरत ग़ज़ल , संकलन योग्य . .
    बधाई !

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