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सोमवार, 25 अप्रैल 2011
एक और रचना राही जी की
ज्ञान ध्यान कुछ काम न आये
हम तो जीवन -भर अकुलाये ,
पथ निहारते दृग पथराये
हर आहट पर मन भरमाये ,
झूठे जग में सच्चे सुख की
क्या तो कोई आस लगाये ।
देवालय हो या मदिरालय
जहां गये जाकर पछताए ।
तड़क -भड़क संतो की ऐसी
दुनियादार देख शरमाए ।
माल लूट का सबने बांटा
हम ही पड़े रहें अलसाए ।
जो बिक जाता धन्य वही है
जो न बिके मूरख कहलाये ।
टिकट बांटने के नाटक में
धूर्त महानायक बन छाये ।
शिष्टाचार भ्रष्टता दोनों -
ने अपने सब द्वैत मिटाए ।
जहां बिछी शतरंज वही ही
शातिर बैठे जाल बिछाए ।
अब के यू खैरात बँटी है
सारा किस्सा दिल बहलाए ।
दुर्जन पार लगाता नैया
सज्जन किसका काम बनाये ।
राही तो सीधे - सादे है
कौन भला क्या उनसे पाये ।
जो बिक जाता धन्य वही है
जवाब देंहटाएंजो न बिके मूरख कहलाये।
बेहद शानदार. व्यवस्था का अच्छे से चित्रण किया है.
sundar rachana jyoti ji
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना ज्योति जी!
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
ज्योति जी, राही जी की कविताओं के बहाने आपकी रचनाधर्मिता से परिचय हुआ. अच्छा लगा. आपके इस सुन्दर प्रयास को नमन........आभार. ........शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंमेरा ब्लॉग है -- baramasa98.blogspot.com
अति सुंदर।धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंnamaskar ji
जवाब देंहटाएंblog par kafi dino se nahi aa paya mafi chahata hoon
राही तो सीधे - सादे है
जवाब देंहटाएंकौन भला क्या उनसे पाये ।
अब राही जी के सीधे-सादे पन से बताइये किसने क्या क्या पाया ,ज्योति जी आप ही बताएं.
चखिए तीखा-तड़का
जवाब देंहटाएंसीएम ऑफिस से शर्मा को फोन
बहुत ही सुंदर रचना|धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंअति सुंदर रचना,धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना, प्रस्तुत करने के लिए शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंजहां बिछी शतरंज वही ही
जवाब देंहटाएंशातिर बैठे जाल बिछाए ।
सच के काफी करीब लगती है आपकी ये लाइनें। बहुत सुंदर।
बहुत सुन्दर ....धन्यवाद
जवाब देंहटाएंराही तो बस आते हैं और चले जाते हैं। सुन्दर कविता।
जवाब देंहटाएंजहां बिछी शतरंज वही ही
जवाब देंहटाएंशातिर बैठे जाल बिछाए ।
ज्योति जी, राही जी की एक और अच्छी ग़ज़ल प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद।
सुन्दर रचना... बहुत बहुत बधाई ।।।।
जवाब देंहटाएंगजल में आपको अभी और काम करने की जरूरत है
बहुत सुन्दर कविता ज्योति जी।
जवाब देंहटाएंदेवालय हो या मदिरालय
जवाब देंहटाएंजहां गये जाकर पछताए ।
तड़क -भड़क संतो की ऐसी
दुनियादार देख शरमाए ।
....
सामाजिक व्यवस्था पर तीक्ष्ण प्रहार ...
kya bat hain bahut khoob likha
जवाब देंहटाएंaur har line sach hain
nice blog
mere blog par bhi aaiyega aur pasand aaye to follow kariyega
http://iamhereonlyforu.blogspot.com/
जहां बिछी शतरंज वही ही
जवाब देंहटाएंशातिर बैठे जाल बिछाए ।
जीवन के बहुत करीब है यह रचना