गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010

'आज की सरकार'

बनी !आज ऐसी 'सरकार ',
चटनी में मिल गयी आचार
दूरदर्शन में देखे ,
सदन की कारवाई
देश हित की बात होती
होती बड़े बड़ाई
हम तुम ,हम तुम होते होते
बंद होती कारवाई
कारवाई की हालात ,
लगती बड़ी अजूबा
लूट खाये देश को ,
लगती यही मंसूबा
आज बनी है ऐसी सरकार ,
चटनी में मिली है अचार
पार्टी पार्टी का नाम नये ,
बनते एक से एक
देश हित में भरे पड़े ,
दल बदलू सांसद अनेक
स्वार्थ हित ,कार्य रहित ,
दल बदलू को अति आराम
इनके हर मंसूबे पर ,
लगा है पूर्ण विराम
टीका टिप्पणी ऐसे करते ,
जैसे हो अज्ञान
इर्ष्या द्वेष में सभी है दिखते,
करेंगे क्या देश काम
चोर !चोर !सब चोर ,
चोरी में है बदनाम
"चारा" का चोर ,
गुनाहों का चोर ,
सब चोरों में है नाम

गठबंधन सब महान

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रचनाकार ------इंदु सिंह



20 टिप्‍पणियां:

  1. wah wah bada maja aay apadh kar,,
    bilkl sachai bayaan ki hai aapne :)

    http://sparkledaroma.blogspot.com/
    http://liberalflorence.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  2. बनी !आज ऐसी 'सरकार ',
    चटनी में मिल गयी आचार ।
    वाह वाह सटीक अभिव्यक्ति न्शुभकामनायें

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  3. ज्योति जी, आदाब
    इस रचना के लिये इंदू जी और आपको बधाई

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  4. AAPNE KYA TIR MARA HAI. THANKS
    PLEASE SEE MY BLOG RAMRAYBLOGSPOSTCOM.BLOGSPOST.COM

    जवाब देंहटाएं
  5. जोरदार रचना
    बहुत बहुत आभार...............

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  6. बहुत ही अच्छी तरह राजनीति की विसंगतियों को उभारा है...सुन्दर रचना ..

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  7. aapki bahut bahut abhaari hu ki aap mere blog par aai aur meri kavitae rachane aapko achi lagi..kripya aati rahiye..saath saath aapko mere doosre blog ka bhi link send kar rahi hu..
    ek nazar daaliega zaroor

    http://sparkledaroma.blogspot.com/

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  8. बहुत ही खूबसूरती से आपने सच्चाई का ज़िक्र किया है! उम्दा रचना!
    सुंदर रचना के लिए बधाई

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  9. बहुत ही सुन्दरता से आपने सच्चाई को प्रस्तुत किया है! बहुत बढ़िया! इस शानदार रचना के लिए बधाई!

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  10. mazaa aa gaya. sachhai likhi hai, wo bhi behatareen andaz me. kabil-e-tarif rachna. shubhkamnayen.

    KATYA

    जवाब देंहटाएं
  11. mazaa aa gaya. sach likha hai aur wo bhi behtareen andaz me. shubhkamnayen.

    KATYA

    जवाब देंहटाएं
  12. सच, सिर्फ सच और सच के सिवा कुछ भी नहीं. मुझ अपना ही एक शेर याद आ गया जो आपकी इस रचना के सम्मान में प्रेषित है:
    जहर तो मैं भी घोल सकता हूँ
    सच सलीके से बोल सकता हूँ.
    ऐसे ही विचार, ऐसी ही रचनाओं की आवश्यकता है. मुझे लगता है कि लानत-मलामत-फटकार जब हर मोर्चे से शुरू होगी तभी सफेदपोशों की करनी में परिवर्तनआएगा.

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  13. बहुत ही सुन्दरता से आपने सच्चाई को प्रस्तुत किया है!

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  14. बहुत ही सुन्दरता से आपने सच्चाई को प्रस्तुत किया है!

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