मंगलवार, 1 दिसंबर 2009

मैं आज शहरयार की ग़ज़ल लिख रही हूँ ,शायद आप सभी उन्हें पढ़े होंगे -----


तुम्हारे शहर में कुछ भी हुआ नही है क्या

कि तुमने चीखों को सचमुच सुना नही है क्या


तमाम खल्क -ए-खुदा इस जगह रुकी क्यो है

यहाँ से आगे कोई रास्ता नही है क्या


लहू -लुहान सभी कर रहे है सूरज को

किसी को खौफ यहाँ रात का नही है क्या


मैं एक ज़माने से हैरान हूँ कि हाकिम - -शहर

जो हो रहा है उसे देखता नही है क्या


उजाड़ते है जो नादाँ इसे उजड़ने दो

कि उजड़ा शहर दोबारा बसा नही है क्या

9 टिप्‍पणियां:

  1. तुम्हारे शहर में कुछ भी हुआ नही है क्या
    कि तुमने चीखों को सचमुच सुना नही है क्या ।
    wah laazwaab hai ,itni badi baat kitni khoobsurti se jaahir ho gayi ye to un mahan shayar ka hi kamaal hai .jo apni hunar hame virasat me de gaye ,mera salaam hajar baar in shayro ko

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  2. वे रचनाएँ कालजयी हो पाती हैं,.जो अपने वक्त के साथ ही आने वाले वक्त को भी ठीक ठीक देख पाती हैं .
    अगर इन शायरों के साथ इनका समय भी दिया जाए तो ब्लॉग और समृद्ध होगा , पठनिए होगा .

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  3. बेहतरीन गज़ल पढ़ाने के लिए धन्यवाद।

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  4. तमाम खल्क -ए-खुदा इस जगह रुकी क्यो है

    यहाँ से आगे कोई रास्ता नही है क्या ।
    bahut sundar gazal.

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  5. उजाड़ते है जो नादाँ इसे उजड़ने दो

    कि उजड़ा शहर दोबारा बसा नही है क्या
    Bahut hee umda.Shaharyar ji kee itanee khoobasurat rachana padhvane ke liye hardik abhar.
    Poonam

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  6. एक एक शेर काबिले तारीफ है धन्यवादिस गज़ल को पढवाने के लिये

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  7. उजाड़ते है जो नादाँ इसे उजड़ने दो
    कि उजड़ा शहर दोबारा बसा नही है क्या ।
    Bahut achhi Gajal prastuti ke liye dhanyavaad.

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  8. लहू -लुहान सभी कर रहे है सूरज को
    किसी को खौफ यहाँ रात का नही है क्या ।
    waah!
    umda!
    bahut achhcee gazal padhwayee...

    main ne pahle nahin padhi thi.

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